SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 88] [निशीथसूत्र स्थान में, द्वार के मध्य के स्थान में, घर के आंगन में, घर की परिशेष भूमि अर्थात् आसपास की खुली भूमि में उच्चार प्रस्रवण परठता है या परठने वाले का अनुमोदन करता है / 72. जो भिक्षु मृतकगृह में, मृतक की राख वाले स्थान में, मृतक के स्तूप पर, मृतक के आश्रय-स्थान पर, मृतक के लयन में, मृतक को स्थल-भूमि अथवा श्मसान की चौतरफ की सीमा के स्थान में उच्चार-प्रस्रवण परठता है या परठने वाले का अनुमोदन करता है / 73. जो भिक्षु कोयले बनाने के स्थान में, सज्जीखार आदि बनाने के स्थान में, पशुओं के डाम देने के स्थान में, तुस जलाने के स्थान में, भूसा जलाने के स्थान में उच्चार-प्रस्रवण परठता है या परठने वाले का अनुमोदन करता है। 74. जो भिक्षु नवीन हल चलाई हुई भूमि में या नवीन मिट्टी की खान में, जहाँ लोग मलमूत्रादि त्यागते हों या नहीं त्यागते हों, वहाँ उच्चार-प्रस्रवण' परठता है या परठने वाले का अनुमोदन करता है। . 75. जो भिक्षु कर्दमबहुल अल्प पानी के स्थान में, कीचड़ के स्थान में या फूलन युक्त स्थान में उच्चार-प्रश्रवण परठता है या परठने वाले का अनुमोदन करता है। 76. जो भिक्षु गूलर, बड़, पीपल व पीपली के फल संग्रह करने के स्थान पर उच्च-प्रस्रवण परठता है या परठने वाले का अनुमोदन करता है। 77. जो भिक्षु पत्ते वाली भाजी, अन्य सब्जियां, मूलग, कोस्तुभ, वनस्पति, धना, जीरा, दमनक व मरुक वनस्पति विशेष के संग्रह स्थान या उत्पन्न होने की वाडियों में उच्चार-प्रस्रवण परठता है या परठने वाले का अनुमोदन करता है। 78. जो भिक्षु इक्षु, चावल, (आदि धान्य) कुसंभ व कपास के खेत में उच्चार-प्रस्रवण परठता है या परठने वाले का अनुमोदन करता है। 79. जो भिक्षु अशोक वृक्षों के वन, शक्तिपर्ण (सप्तवर्ग) वृक्ष के वन, चंपक वृक्षों के वन और आम्रवन या अन्य भी ऐसे बन, जो पत्र, पुष्प, फल, बीज आदि से युक्त हों, वहाँ उच्चार प्रस्रवण परठता है या परठने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त अाता है।) विवेचन-उच्चार-बड़ी नीत, मल, अशुचि, सण्णा, बच्च, पासवण-लघुनीत, मूत्र, कायिकी, मुत्त, अादि इन पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग किया जाता है। यहाँ पर बड़ी नीत की मुख्यता का प्रसंग है और बड़ी नीत के साथ लघुनीत का आना प्रायः निश्चित्त है अतः "उच्चार-पासवण" उभय शब्द का एक साथ प्रयोग हुआ है / व्याख्याकार ने भी बड़ीनीत की मुख्यता से व्याख्य की है। 1. घर-समुच्चय रूप से सभी विभाग व खुली जमीन युक्त घर / विशेष संभवित 6 स्थानों का तो अलग निर्देश किया ही है अतः परिशेष कमरे, रसोई घर आदि “समुच्चय घर" में समाविष्ट समझना / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy