________________ दूसरा उद्देशक] रोम-परिकर्म प्रायश्चित्त 42. जे भिक्खू अप्पणो दोहाई जंघ-रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा साइज्जइ। 43. जे भिक्खू अप्पणो दीहाई वत्थि-रोमाइं कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा साइज्जइ। 44. जे भिक्खू अप्पणो दोहाई "रोमराई" कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्त वा संठवेंतं वा . साइज्ज। 45. जे भिक्खू अप्पणो दोहाई कक्ख-रोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा कप्तं वा संठवेंतं वा साइज्जइ _ 46. जे भिक्खू अप्पणो दोहाई "उत्तरो?-रोमाई" कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा साइज्जइ। 47. जे भिक्खू अप्पणो दीहाई "मंसुरोमाइं" कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा साइज्जइ / 42. जो भिक्षु अपने बढ़े हुए "जंघा" के रोमों को काटता है या सुधारता है (संवारता है) या ऐसा करने वाले का अनुमोदन करता है / 43. जो भिक्षु बढ़े हुए गुह्य देश के रोमों को काटता है, सुधारता है, या ऐसा करने वाले का अनुमोदन करता है। 44. जो भिक्षु अपने बढ़े हुए पेट, छाती व पीठ भाग के रोमों को काटता है या सुधारता हैसंवारता है या ऐसा करने वाले का अनुमोदन करता है / 45. जो भिक्षु अपने चढ़े हुए आंख के रोमों को काटता है या सुधारता है--संवारता है या ऐसा करने वाले का अनुमोदन करता है। 46. जो भिक्षु अपनी बढ़ी हुई "दाढ़ी" को काटता है या सुधारता--संवारता है या ऐसा करने वाले का अनुमोदन करता हैं / 47. जो भिक्षु अपनी बढ़ी हुई "मूछों' को काटता है या सुधारता-संवारता है या ऐसा करने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है / ) दंत-परिकर्म-प्रायश्चित्त 46. जे भिक्खू अप्पणो "दंते" आघंसेज्ज वा पघंसेज्ज वा, आघसंतं वा पघंसंतं वा साइज्जइ। 49. जे भिक्खू अप्पणो "दंते" सीओदगवियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा, उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा साइज्जइ / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org