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________________ 64] [निशीथसूत्र 10. जे भिक्खू आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइकुलेसु वा, परियावसहेसु वा 'अण्णउथिएहि वा गारथिएहि वा' असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अभिहडं आहट्ट देज्जमाणं पडिसेहेत्ता, तमेव अणुवत्तिय-अणुवत्तिय, परिवेढिय-परिवेढिय, परिजविय-परिजविय, ओभासिय-ओभासिय जायइ, जायंतं वा साइज्जइ / 11. जे भिक्खू आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइकुलेसु बा, परियावसहेसु वा 'अण्णउत्थिणीए वा गारथिणीए वा' असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा अभिहडं आहट्ट देज्जमाणं पडिसेहता, तमेव अणुवत्तिय-अणुवत्तिय, परिवेढिय-परिवेढिय, परिजविय-परिजविय, ओभासिय-ओभासिय जायइ, जायंतं वा साइज्जइ / 12. जे भिक्खू आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइकुलेसु वा, परियावसहेसु वा, 'अण्णउत्थिणीहि वा गारस्थिणीहि वा' असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अभिहडं आहट्ट देज्जमाणं पडिसेहेत्ता तमेव अणवत्तिय-अणुवत्तिय, परिवेढिय-परिवेढिय, परिजविय-परिजविय, ओभासिय-ओभासिय जायइ, जायंतं वा साइज्जइ / 1. जो भिक्षु धर्मशालाओं में, उद्यानगृहों में, गृहस्थों के घरों में अथवा आश्रमों में अन्यतीथिक से या गृहस्थ से अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य मांग-मांग कर याचना करता है या मांग-मांग कर याचना करने वाले का अनुमोदन करता है। 2. जो भिक्षु धर्मशालाओं में, उद्यानगृहों में, गृहस्थों के घरों में अथवा आश्रमों में अन्यतीथिकों से या गृहस्थों से अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य मांग-मांग कर याचना करता है या मांग-मांग कर याचना करने वाले का अनुमोदन करता है। 3. जो भिक्षु धर्मशालाओं में, उद्यानगहों में, गृहस्थों के घरों में अथवा प्राश्रमों में अन्यतोथिक या गृहस्थ स्त्री से अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य मांग-मांग कर याचना करता है या मांग-मांग कर याचना करने वाले का अनुमोदन करता है। 4. जो भिक्षु धर्मशालाओं में, उद्यानगृहां में, गृहस्थों के घरों में अथवा पाश्रमों में अन्यतीथिक या गृहस्थ स्त्रियों से अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य मांग-मांग कर याचना करता है या मांगमांग कर याचना करने वाले का अनुमोदन करता है। 5. जो भिक्षु धर्मशालाओं में, उद्यानगृहों में, गृहस्थों के घरों में या पाश्रमों में कौतूहलवश अन्यतीथिक से या गृहस्थ से अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य मांग-मांग कर याचना करता है या मांगमांग कर याचना करने वाले का अनुमोदन करता है। 6. जो भिक्षु धर्मशालाओं में, उद्यानगृहों में, गृहस्थों के घरों में या पाश्रमों में कौतूहलवश अन्यतीथिकों से या गृहस्थों से अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य मांग-मांग कर याचना करता है या मांगमांग कर याचना करने वाले का अनुमोदन करता है। 7. जो भिक्षु धर्मशालाओं में, उद्यानगृहों में, गृहस्थों के घरों में या आश्रमों में कौतूहलवश अन्यतीर्थिक या गृहस्थ स्त्री से अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य मांग-मांग कर याचना करता है या मांगमांग कर याचना करने वाले का अनुमोदन करता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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