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________________ 34] [निशीथसूत्र प्रश्रव्याकरण के टीकाकार ने उक्त पाठ की टीका में श्रमणों के उपकरणों की संख्या जो चौदह कही है वह भी रजोहरण और पादपोंछन को भिन्न-भिन्न मानने पर ही होती है। प्राचा० श्रु० 2, अ० 10 में कहा है मल का प्रबल वेग आने पर किसी के पास स्वयं का पादपोंछन न हो तो साथी श्रमण से पादपोंछन की याचना करे / किन्तु रजोहरण तो स्वयं का नहीं हो ऐसा विकल्प ही नहीं होता है, क्योंकि अचेल जिनकल्पी भिक्षु को भी रजोहरण रखना आवश्यक है। इन आगमप्रमाणों से रजोहरण और पादपोंछन भिन्न-भिन्न उपकरण सिद्ध होते हैं, अतः दोनों को एक नहीं मानना चाहिए।। रजोहरण फलियों के समूह से बना हुआ औधिक उपकरण है। पादपोंछन वस्त्रखंड होता है और वह औपग्रहिक उपकरण है। काष्ठदण्डयुक्त पादपोंछन डंडे से बांधा हुआ वस्त्रखंड है। जो सातवें सूत्र में काष्ठदण्ड, युक्त पादपोंछन डेढ मास से अधिक रखने का प्रायश्चित्त कहा है, भाष्यकार ने इस विषय को स्पष्ट करते हुए कहा है कि जो पादपोंछन अपरिकर्म वाला हो अर्थात् नया हो उसे चार मास तक रख सकते हैं, जो पादपोंछन अल्प परिकर्म वाला (पुराना) हो उसे दो मास तक रखा जा सकता है और जो पादत्रोंछन सपरिकर्म (जीर्ण) है वह डेढ मास तक रखा जा सकता है / उसके बाद आवश्यक हो तो अन्य पादपोंछन की याचना कर लेनी चाहिए या नया बना लेना चाहिए / इसका कारण यह है कि-१. काष्ठदण्डयुक्त पादपोंछन की किसी स्थान में 2-4 दिन या उत्कृष्ट किसी क्षेत्र में काल-स्वभाव के कारण डेढ मास तक उपयोगिता रहती है / बाद में मकान के कई भागों में मकड़ी आदि छोटे-मोटे जीवों का प्रचार-प्रसार नहीं रहता है / अथवा 2. काष्ठदण्ड के साथ लगा हुआ पादपोंछन का वस्त्र डेढ मास के बाद अति मलिन एवं नमी आदि के कारण उसमें जीवोत्पति हो जाती है या जीर्ण वस्त्र हो तो वह दुष्प्रतिलेख्य हो जाता है, अतः उसे खोलकर अन्य वस्त्र लगाया जा सकता है / इसीलिए डेढ मास की मर्यादा का उल्लंघन करने का सूत्र में प्रायश्चित्त कहा है / डेढ मास के पूर्व कभी भी आवश्यक हो तो खोलकर परिवर्तन किया जा सकता है। किन्तु अकारण खोलने पर या प्रतिदिन खोलने पर प्रमादवृद्धि होती है / इस कारण आठवें सूत्र में अकारण दण्ड से वस्त्र को खोलने एवं अलग करने का प्रायश्चित्त कहा गया है। ___ काष्ठदण्ड के पादत्रोंछन को ऐसी विधि से बांधना चाहिए कि जिससे उसकी प्रतिलेखना सुविधापूर्वक हो सके। जिस प्रकार वस्त्र को विधि-युक्त सीने एवं विधियुक्त गांठ देने से वह सुप्रतिलेख्य होता है उसी प्रकार काष्ठदण्ड के साथ विधि युक्त बांधा गया पादपोंछन भी सुप्रतिलेख्य होता है / उसे अकारण खोलने की आवश्यकता नहीं होती है / भाष्य गा. 1413 में पादपोंछन को औपग्रहिक उपकरण कहा है अतः जिस क्षेत्र में और जिस काल में जितने समय आवश्यक हो उतने समय तक रखना एवं उपयोग में लेना कल्पता है / जब आवश्यकता न रहे तब उसे छोड़ देना या परठ देना चाहिए / सारांश यह है कि भिक्षु आवश्यक होने पर सुप्रतिलेख्य काष्ठदण्डयुक्त पादपोंछन उत्कृष्ट डेढ़ मास तक रख सकता है। उसके बाद भी कभी रखना आवश्यक हो जाय तो खोलकर परिवर्तन कर लेना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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