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________________ प्रथम उद्देशक विवेचन-अंतिम सूत्र के साथ या अंत में इस सूत्र की व्याख्या प्रायः नहीं मिलती है। मूलपाठ में प्रायः सभी प्रतियों में अंतिम सूत्र के साथ इस पाठ को रखा गया है। इस विषय की विशेष जानकारी के लिये प्रथम सूत्र का विवेचन देखें। सूत्र में 'परिहारट्ठाणं' शब्द केवल सामान्य प्रायश्चित्त अर्थ में प्रयुक्त है। इसी प्रकार अन्य उद्देशकों में भी 'मासिक' और चातुर्मासिक शब्द के साथ इसी अर्थ में समझ लेना चाहिये / किन्तु विशेष प्रकार के परिहारतप रूप प्रायश्चित्त के अर्थ में नहीं समझना चाहिये। प्रथम उद्देशक का सारांश-- सूत्र 1 हस्तकर्म करना। सूत्र 2-8 अंगादान का संचालन 2 संबाधन 3 अभ्यंगन 4 उबटन 5 प्रक्षालन 6 त्वचा अप वर्तन और 7 जिव्रण क्रियाएं करना / सूत्र 9 शुक्र पुद्गल निकालना / सूत्र 10 सचित्त पदार्थ सूधना। सूत्र 11 पदमार्ग बनवाना, संक्रमण (पुल) मार्ग बनवाना, अवलम्बन का साधन बनवाना / सूत्र 12 पानी निकलने की नाली बनवाना / सूत्र 13 छींका और उसका ढक्कन बनवाना / सूत्र 14 सूत की या रज्जु की चिलमिली बनवाना / सूत्र 15-18 सूई, कैंची, नखछेदनक और कर्णशोधनक सुधरवाना / सूत्र 19-22 सूई आदि की बिना प्रयोजन याचना करना। सूत्र 23-26 सूई आदि की अविधि से याचना करना। सूत्र 27-30 जिस कार्य के लिए सूई आदि की याचना की है, उससे भिन्न कार्य करना / सूत्र 31-34 अपने कार्य के लिए सूई आदि की याचना करके अन्य को उसके कार्य के लिए दे देना। सूत्र 35-38 सूई आदि अविधि से लौटाना / सूत्र 39 पात्र का परिकर्म करवाना। सूत्र 40 दण्ड, लाठी, अवलेखनिका और बांस की सूई का परिकर्म करवाना। सूत्र 41 अकारण पात्र के एक थेगली लगाना / सूत्र 42 सकारण पात्र के तीन से अधिक थेगलियां लगाना। सूत्र 43 पात्र के प्रविधि से बंधन बांधना। सूत्र 44 पात्र के एक बंधन लगाना / सूत्र 45 पात्र के तीन से अधिक बंधन लगाना / सूत्र 46 तीन से अधिक बन्धन वाला पात्र डेढ मास से अधिक रखना। सूत्र 47 फटे हुए वस्त्र के एक थेगली लगाना / फटे हुए वस्त्र के तीन से अधिक थेगली लगाना / सूत्र 49 अविधि से वस्त्र सीना। सूत्र 50 फटे हुए वस्त्र के एक गांठ देना। सूत्र 51 फटे हुए वस्त्र के तीन से अधिक गांठ देना / सूत्र 48 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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