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________________ प्रथम उद्देशक] [25 रंगभेद से भी वस्त्रों के और धागों के अनेक प्रकार हैं। अतः भिक्षु वस्त्रखण्डों को जोड़ते या जुड़वाते समय ऐसा विवेक रखे कि जुड़े हुए वस्त्रखण्ड और सिलाई के धागे भिन्न भिन्न न दिखें / वस्त्र के अधिक जोड़-भाष्य चूर्णिकार ने “अइरेग गहियं' का संबंध ऊपर के ५२-५३-५४५५वें सूत्रों के "गहेइ" (गंठेइ) विषय से जोड़ा है तथा सूत्र 50-51 से भी जोड़ा है और कहा है कि साधु साध्वियां यदि अधिक जोड़ का, अधिक गांठ का वस्त्र डेढ़ मास से अधिक रखें तो वे प्रायश्चित्त के पात्र होते हैं / जैसा पात्र के सूत्रों में अधिक बंधन के पात्र को डेढ़ महीने से अधिक रखने संबंधी विवेचन किया गया है उसी प्राशय का विवेचन यहां भी समझना चाहिये। मर्यादा उपरांत एक भी जोड़ किया हो तो सूत्रपोरिसी और अर्थपोरिसी करने के बाद अन्य वस्त्र को गवेषणा कर लेना चाहिये। दो तीन जोड़ किये हों तो केवल सूत्रपोरिसी करके वस्त्र की गवेषणा करना और तीन से ज्यादा जोड़ किये हों तो सूत्र व अर्थ दोनों पोरिसी न करे, पहले वस्त्र को गवेषणा करे / सूत्र-अर्थ पोरिसी का प्राशय है-'स्वाध्याय व ध्यान करने की पोरिसी।' सारांश-पूर्वोक्त पात्र विषयक 6 सूत्रों का और वस्त्र विषयक 10 सूत्रों का सार यह है कि वस्त्र के अंगली लगाना, गांठ देना, वस्त्रखण्ड जोड़ना तथा पात्र के टिकड़ी लगाना, बन्धन लगाना आदि कार्य साधु-साध्वियों को यथासंभव नहीं करने चाहिये / वस्त्र पात्र विषयक उक्त कार्य करने यदि आवश्यक हों तो उन्हें तीन से अधिक नहीं करने चाहिये / ___उक्त कार्य तीन से अधिक करने जैसी स्थिति यदि हो गई हो तो सूत्रपौरुषी, अर्थपौरुषी न करके भी उस काल में नये वस्त्र की याचना कर लेनी चाहिए। इसमें डेढ़ मास की मर्यादा का उल्लंघन नहीं होना चाहिये। गहधूम-परिसाटन.प्रायश्चित्त 57. जे भिक्खू गिहधूमं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा परिसाडावेइ, परिसाडावेतं वा साइज्जइ। 57. जो भिक्षु गृहधूम अन्यतीथिक या गृहस्थ से उतराता है या उतराने वाले का अनुमोदन करता है, (उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है।) विवेचन-इस सूत्र में गृहधूम उतरवाने का प्रायश्चित्त विधान है, रसोई घर की दिवाल पर या छत के नीचे चूल्हे का जमा धुआं 'गृहधूम' कहा जाता है / रसोईघर के स्वामी से रसोईघर में प्रवेश की आज्ञा प्राप्त करके छत की ऊंचाई तक हाथ पहुंच सके ऐसा साधन लेकर साधु यदि धुआं उतार ले तो उसे किसी प्रकार का प्रायश्चित्त नहीं आता है। रसोईघर में प्रवेश की आज्ञा न मिलने से अथवा शारीरिक असामर्थ्य से साधु स्वयं गृहधूम न उतार सके तो अन्य से गृहधूम उतरवाने पर उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त पाता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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