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________________ 18] [निशीथसूत्र 22. जो भिक्षु बिना प्रयोजन कर्णशोधनक की याचना करता है या याचना करने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है / ) विवेचनस्वयं के लिए आवश्यक होने पर या अन्य के मंगवाने पर भी बड़ों की आज्ञा लेकर के ही सूई आदि की याचना करनी चाहिये। क्योंकि इनके खो जाने, टूट जाने, चुभ जाने, लग जाने की या वापिस देना भूल जाने की सम्भावना रहती है, अतः इन्हें बिना प्रयोजन ग्रहण नहीं करना चाहिये। अविधि याचना प्रायश्चित्त 23. जे भिक्खू अविहीए सूई जायइ, जायंतं वा साइज्जइ / 24. जे भिक्खू अविहीए पिप्पलगं जायइ, जायंतं वा साइज्जइ / 25. जे भिक्खू अविहीए णहच्छेयणगं जायइ, जायंतं वा साइज्जइ। 26. जे भिक्खू अविहीए कण्णसोहणगं जायइ, जायंतं वा साइज्जइ / 23. जो भिक्षु अविधि से सूई की याचना करता है या याचना करने वाले का अनुमोदन करता है। 24. जो भिक्षु अविधि से कतरणी की याचना करता है या याचना करने वाले का अनुमोदन करता है। 25. जो भिक्षु अविधि से नखछेदनक की याचना करता है या याचना करने वाले का अनुमोदन करता है। 26. जो भिक्षु प्रविधि से कर्णशोधनक की याचना करता है या याचना करने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है।) विवेचन-साधु का प्रत्येक कार्य विवेकपूर्वक व विधियुक्त होना चाहिये / सूई, कतरणी आदि तीक्ष्ण होते हैं, उनके ग्रहण करने में विवेक आवश्यक है जिससे शारीरिक क्षति न हो / अविवेकपूर्वक ग्रहण करते देखकर गृहस्थ को अपने उपकरण की सुरक्षा में शंका हो सकती है। जिससे देने की भावना में कमी आ सकती है। कुछ विशेष प्रकार की अविधियों का कथन आगे के सूत्रों में है। अनिर्दिष्ट उपयोगकरण प्रायश्चित्त 27. जे भिक्खू पाडिहारियं सूई जाइत्ता वत्थं सिव्विस्सामि त्ति पायं सिव्वइ सिव्वंतं वा साइज्ज। 28. जे भिक्खू पाडिहारियं पिप्पलगं जाइत्ता वत्थं छिदिस्सामि त्ति पायं छिदइ छिदंतं वा साइज्जइ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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