SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 12] [विपाकसूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध पुरिसं एवं वयासो-'नो खलु, देवाणुप्पिया! इन्दमहे इ वा जाव निग्गच्छइ / समणे जाव विहरइ / तए णं एए जाव निग्गच्छति / " तए णं से जाइ-अंधपुरिसे तं पुरिसं एवं क्यासी-'गच्छामो णं देवाणुप्पिया! अम्हे वि समणं भगवं जाव पज्जवासामो।" तए णं जाइअन्धे पुरिसे तेणं पुरोदंडएणं पुरिसेणं पगडिज्जमाणे पगडिज्जमाणे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उगावए, उवागच्छित्ता तिक्खत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करेत्ता चंदइ, नमंसह, बंदित्ता नमंसित्ता जाव पज्जवासइ। तए णं समणे भगवं महावीरे विजयस्स खत्तियस्त तोसे य....."धम्ममाइक्खइ, जाव परिसा पडिगया, विजए वि गए। 11- तदनन्तर वह जन्मान्ध पुरुष नगर के कोलाहलमय वातावरण को जानकर उस पुरुष के प्रति इस प्रकार बोला-हे देवानुप्रिय ! क्या आज मृगाग्राम नगर में इन्द्र-महोत्सव है [स्कन्दमहोत्सव है, उद्यान की या पर्वत की यात्रा है, जिसके कारण ये उग्रवंशी तथा भोगवंशी आदि एक ही दिशा में एक ही ओर] नगर के बाहर जा रहे हैं ? (यह सुन) उस पुरुष ने जन्मान्ध से कहा'हे देवानुप्रिय ! आज इस गाम (नगर) में इन्द्रमहोत्सव नहीं है किन्तु (इस मृगा-ग्राम--नगर के बाहर चन्दन-पादप उद्यान में) श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे हैं; वहाँ ये सब दर्शनार्थ जा रहे हैं / तब उस जन्मान्ध पुरुष ने कहा-'चलो, हम भी चलें और चलकर भगवान् की पर्युपासना करें। तदनन्तर दण्ड के द्वारा आगे को ले जाया जाता हुआ वह जन्मान्ध पुरुष, जहाँ पर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी विराजमान थे वहाँ पर आ गया। वहाँ आकर वह तीन बार दक्षिण ओर से प्रारम्भ करके प्रदक्षिणा (आवर्तन) करता है। प्रदक्षिणा करके वंदन-नमस्कार करता है / वन्दना तथा नमस्कार करके भगवान् की पर्युपासना-सेवा भक्ति में तत्पर हुआ। तदनन्तर श्रमण भगवान् महावीर ने विजय राजा तथा नगर-जनता को धर्मोपदेश दिया। यावत् कथा सुनकर विजय राजा तथा परिषद् यथास्थान चले गये। मृगापुत्र के विषय में गौतम की जिज्ञासा 12 तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवो महावीरस्स जे? अंतेवासी इन्दभूई नामं अणगारे जाव विहरई / तए णं से भगवं गोयमे तं जाइअन्धपुरिसं पासइ, पासित्ता जायसड्ढे जाव एवं वयासी–'अस्थि णं भंते ! केई पुरिसे जाइअन्धे जाइअन्धास्वे?' हंता अस्थि / "कह णं भंते ! से पुरिसे जाइअन्धे जाइअन्धरूवे ?" 'एवं खलु, गोयमा ! इहेव मियग्गामे नयरे विजयस्स खत्तियस्स पुत्ते मियादेवीए अत्तए मियापुत्ते नामं दारए जाइअन्धे जाइग्रन्धरूवे / नत्थि णं तस्स दारगस्स जाव प्रागिइमित्त / तए णं सा मियादेवी जाव पडिजागरमाणी पडिजागरमाणी विहर इ !' तए णं से भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं क्यासी'इच्छामि गं भंते ! तुन्भेहिं प्रमणुनाए समाणे मियापुत्तं दारगं पासित्तए।' 'प्रहासुहं देवाणुप्पिया !' १२--उस काल तथा उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के प्रधान शिष्य इन्द्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003479
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy