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________________ सार : संक्षेप] 17. इतना दीर्घकालिक भवभ्रमण करने और असीम-अपार वेदनाएँ भोगने के अनन्तर बैल के रूप में जन्मेगा / तत्पश्चात्-~१८. उसे मनुष्यभव की प्राप्ति होगी। मनुष्यभव में संयम की साधना करके वह सिद्धि प्राप्त करेगा। शासन के माध्यम से प्राप्त सत्ता का दुरुपयोग करने वालों, रिश्वतखोरों, प्रजा पर अनुचित कर-भार लादने वालों और इस प्रकार के पापों का आचरण करने वालों के भविष्य का यह एक निर्मल दर्पण है / आज के वातावरण में प्रस्तुत अध्ययन और आगे के अध्ययन भी अत्यन्त उपयोगी और शिक्षाप्रद हैं। प्रथम अध्ययन में प्रदर्शित पाप के दुःखरूप विपाक का ही अगले अध्ययनों में निरूपण किया गया है / घटनामों एवं पापाचार के प्रकार में किंचित् भिन्नता होते हुए भी दुःखविपाक के सभी अध्ययनों का मूल स्वर एक-सा है / विस्तार से जानने के लिए जिज्ञासु-जन मूल शास्त्र का अध्ययन करें। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003479
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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