________________ अष्टम अध्ययन भद्रनन्दी १-अट्ठमस्स उवखेवो। १-अष्टम अध्याय का उत्क्षेप पूर्व की भांति ही समझ लेना चाहिये / २--सुघोसं नयरं। देवरमणं उज्जाणं। वीरसेणो जक्खो। प्रज्जुणो राया। तत्तवई देवी। भनन्दी कुमारे / सिरिदेवी पामोक्खाणं पंचसयाणं रायवरकन्नगाणं पाणिग्गहणं जाव पुव्वभवे / महाघोसे नयरे / धम्मघोसे गाहावई / धम्मसीहे अणगारे पडिलाभिए जाब सिद्ध / २-सुघोष नामक नगर था। वहाँ देवरमण नामक उद्यान था। उसमें वीरसेन नामक यक्ष का यक्षायतन था। सुघोष नगर में अर्जुन नामक राजा राज्य करता था। उसके तत्त्ववती नाम की रानी थी और भद्रनन्दी नाम का राजकुमार था / उसका श्रीदेवी आदि 500 श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहण हुआ / किसी समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का वहां पदार्पण हुआ / भद्रनन्दी ने भगवान की देशना से प्रभावित होकर श्रावकधर्म अङ्गीकार किया / श्री गौतम स्वामी ने उसके पूर्वभव के सम्बन्ध में पृच्छा की और भगवान् ने उत्तर देते हुए फरमाया-... हे गौतम ! महाघोष नगर था। वहाँ धर्मघोष नाम का गाथापति रहता था। उसने धर्मसिंह नामक मुनिराज को निर्दोष आहार के दान से प्रतिलाभित कर मनुष्य-भव के आयुष्य का बन्ध किया और यहाँ पर उत्पन्न हुआ। यावत् साधुधर्म का यथाविधि अनुष्ठान करके श्री भद्रनन्दी अनगार ने बन्धे हुए कर्मों का आत्यंतिक क्षय कर मोक्ष पद को प्राप्त किया / निक्षेप-उपसंहार पूर्ववत् समझना चाहिये। विवेचन-सुबाहुकुमार और भद्रनन्दी के जीवन में इतना ही अन्तर है कि सुबाहुकुमार देवलोक आदि अनेकों भव कर के महाविदेह क्षेत्र से सिद्ध होंगे जब कि भद्रनन्दी इसी भव में मुक्ति को प्राप्त कर लेते हैं। // अष्टम अध्ययन समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org