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________________ नवम अध्ययन : देवदत्ता [109 देवदत्ता का भविष्य २६--देवदत्ता णं भंते ! देवी इसो कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ ? गोयमा ! असीई बासाई परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उवज्जिहिइ। संसारो। वणस्सई / तो अणन्तरं उध्वट्टित्ता गंगपुरे नयरे हंसत्ताए पच्चायाहिइ / से णं तत्थ साउणिएहि वहिए समाणे तत्थेव गंगपुरे नयरे सेटिकुलंसि उववज्जिहिइ / बोही / सोहम्मे / महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ / निक्खेवो / २९--तब गौतम स्वामी ने प्रश्न किया-अहो भगवन् ! देवदत्ता देवी यहाँ से काल मास में काल करके कहाँ जाएगी ? कहाँ उत्पन्न होगी ? भगवान महावीर ने कहा-हे गौतम ! देवदत्ता देवी 80 वर्ष की परम-ग्रायु भोग कर काल मास में काल करके इस रत्नप्रभा नामक प्रथम पृथिवी-नरक में नारक पर्याय में उत्पन्न होगी। शेष संसारभ्रमण पूर्ववत् करती हुई अर्थात् प्रथम अध्ययनगत मृगापुत्र की भांति यावत् वनस्पति अन्तर्गत निम्ब ग्रादि कटु-वृक्षों तथा कटुदुग्ध वाले अर्कादि पौधों में लाखों बार उत्पन्न होगी। तदनन्तर वहाँ से निकलकर गङ्गपुर नगर में हंस रूप से उत्पन्न होगी / वहाँ शाकुनिकों द्वारा वध किए जाने पर वह गंगपुर में ही श्रेष्ठिकुल में पुत्ररूप में जन्म लेगी। वहां उसका जीव सम्यक्त्व को प्राप्त कर सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में उत्पन्न होगा / वहाँ से च्युत होकर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा। वहाँ चारित्र ग्रहण कर यथावत् पालन कर सिद्धि को प्राप्त करेगा। सर्व कर्मों से मुक्त होगा। निक्षेप--श्री सुधर्मा स्वामी ने उपसंहार करते हुए कहा हे जम्बू ! निर्वाण-प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने नौवें अध्ययन का यह अर्थ कहा है। // नवम अध्ययन समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003479
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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