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________________ 88 // [विपाकसूत्र - प्रथम श्रु तस्कन्ध तत्पश्चात् किसी समय उम्बरदत्त के शरीर में एक ही साथ सोलह प्रकार के रोगातङ्क उत्पन्न हो गये, जैसे कि, श्वास, कास यावत् कोढ़ आदि / इन सोलह प्रकार के रोगातकों से अभिभूत हुआ उम्बरदत्त खुजली यावत् हाथ आदि के सड़ जाने से दुःखपूर्ण जीवन बिता रहा है। भगवान् कहते हैं-हे गौतम ! इस प्रकार उम्बरदत्त बालक अपने पूर्वकृत अशुभ कर्मों का यह भयङ्कर फल भोगता हुअा इस तरह समय व्यतीत कर रहा है। उंबरदत्त का भविष्य 17 --'से णं उंबरदत्ते दारए कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ,कहिं उववर्जािहइ ? गोयमा ! उंबरदत्ते दारए बावरि वासाइं परमाउयं पालइत्ता कालमासे काल किच्चा इमीसे रमणप्पभाए पुढवीए नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ / संसारो तहेव जाव पुढवी / तमो हस्थिणाउरे नयरे कुक्कुडत्ताए पच्चायाहिइ / जाय मेत्त चेव गोटिल्लवहिए तत्थेव हथिणाउरे नयरे सेट्टिकुल सि उववज्जिहिइ / बोहि, सोहम्मे कप्पे, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ / निक्लेवो। १७--तदनन्तर श्री गौतमस्वामी ने भगवान् महावीर स्वामी से पूछा-अहो भगवन् ! यह उम्बरदत्त बालक मृत्यु के समय में काल करके कहाँ जायगा? और कहाँ उत्पन्न होगा? भगवान् ने उत्तर दिया-हे गौतम ! उम्बरदत्त बालक 72 वर्ष का परम आयुष्य भोगकर कालमास में काल करके--मरण के समय मर कर इसी रत्नप्रभानाम प्रथम नरक में नारक रूप से उत्पन्न होगा। वह पूर्ववत् संसार भ्रमण करता हुअा पृथिवी आदि सभी कायों में लाखों बार उत्पन्न होगा। वहाँ से निकल कर हस्तिनापुर में कुकुट-कूकड़े के रूप में उत्पन्न होगा। वहां जन्म लेने के साथ ही गोष्ठिकों-दुराचारी मंडली के द्वारा वध को प्राप्त होगा। पुनः हस्तिनापुर में ही एक श्रेष्ठिकुल में उत्पन्न होगा / वहां सम्यक्त्व को प्राप्त करेगा। वहां से मरकर सौधर्मनामक प्रथम कल्प में जन्म लेगा। वहां से च्युत होकर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा। वहाँ अनगार धर्म को प्राप्त कर यथाविधि संयम की आराधना कर कर्मो का क्षय करके सिद्धि को प्राप्त होगा-सर्व कर्मों, दु:खों का अन्त करेगा। निक्षेप-उपसंहार की कल्पना पूर्ववत् कर लेनी चाहिये, अर्थात् श्रमण भगवान महावीर ने सप्तम अध्ययन का यह अर्थ कहा है। सप्तम अध्याय समाप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003479
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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