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________________ सप्तम अध्ययन : उम्बरवत्त ] [81 ६-तए णं से गोयमे तच्चं पिछट्टक्खमणपारणगंसि तहेव जाव पच्चस्थिमिल्लेणं दुवारेणं अणुपविसमाणे तं चेव पुरिसं पासइ कच्छुल्लं! ६-तदनन्तर भगवान् गौतम तीसरी बार बेले के पारण के निमित्त उसी नगर में पश्चिम दिशा के द्वार से प्रवेश करते हैं, तो वहां पर भी वे उसी पूर्ववणित पुरुष को देखते हैं। पूर्वभव संबंधी पृच्छा ७–भगवं गोयमे चउत्थं पि छटुक्खणपारणगंसि उत्तरेण / इमेयारूवे अज्झथिए समुप्पन्न - 'अहो णं इमे पुरिसे पुरापोराणाणं जाव एवं वयासो-एवं खलु अहं, भंते ! छठ्ठ० जाव रीयंते जेणेव पाड लिसंडे नयरे तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता पालिसंडे पुरथिमिल्लेणं दुवारेणं अणुपवितु / तत्थ णं एगं पुरिसं पासामि कच्छुल्लं जाव वित्ति कप्पेमाणं / तए प्रहं दोच्चछट्टखमणपारणगंसि दाहिणिल्लेणं दुवारेणं, तहेव / तच्चपि छटुक्खमणपारणगंसि पच्चत्यिमेणं, तहेव / तए णं अहं चउत्थं वि छ?क्खमणपारणगंसि उत्तरदुवारेणं अणुष्पविसामि, तं चेव पुरिसं पासामि कच्छुल्लं जाव वित्ति कप्पेमाणे विहरइ / चिन्ता ममं / ' पुन्वभवपुच्छा ।-वागरेइ / ७--इसी प्रकार गौतम चौथी बार बेले के पारणे केलिये पाटलिषण्ड में उत्तरदिशा के द्वार से प्रवेश करते हैं। तब भी उन्होंने उसी पुरुष को देखा / उसे देखकर मन में यह संकल्प हुआ कि--- अहो ! यह पुरुष पूर्वकृत अशुभ कर्मों के कटु-विपाक को भोगता हुआ दुःख पूर्ण जीवन व्यतीत कर रहा है यावत् वापिस आकर उन्होंने भगवान् से कहा 'भगवन् ! मैंने बेले के पारणे के निमित्त यावत् पाटलिषण्ड नगर की ओर प्रस्थान किया और नगर के पूर्व दिशा के द्वार से प्रवेश किया तो मैंने एक पुरुष को देखा जो कण्डूरोग से आक्रान्त यावत् भिक्षावृत्ति से आजीविका कर रहा था। फिर दूसरी बार पुनः छठे के पारणे के निमित्त भिक्षा के लिये उक्त नगर के दक्षिण दिशा के द्वार से प्रवेश किया तो वहाँ पर उसी पुरुष को उसी रूप में देखा। तीसरी बार पारणे के निमित्त पश्चिम दिशा के द्वार से प्रवेश किया तो वहाँ पर भी पुनः उसी पुरुष को उसी अवस्था में देखा और जब चौथी बार में बेले के पारण के निमित्त पाटलिखण्ड में उत्तर दिग्द्वार से प्रविष्ट हुआ तो वहाँ पर भी कंडूरोग से ग्रस्त भिक्षावृत्ति करते हुए उस पुरुष को देखा। उसे देखकर मेरे मानस में यह विचार उत्पन्न हुया कि अहो ! यह पुरुष पूर्वोपाजित अशुभ कर्मों का फल भुगत रहा है; इत्यादि। प्रभो ! यह पुरुष पूर्वभव में कौन था ? जो इस प्रकार भीषण रोगों से आक्रान्त हुआ कष्टपर्ण जीवन व्यतीत कर रहा है ? भगवान् महावीर स्वामी ने उत्तर देते हुए कहा पूर्वभव-वर्णन --एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जम्बुद्दीवे दोवे भारहेवासे विजयपुरे नाम नयरं होत्था, रिद्धस्थिमियसमिद्ध / तत्थ णं विजयपुरे नयरे कणगरहे नामं राया होत्था / तस्प्त णं कणगरहस्स रन्नो धन्नंतरो नाम वेज्जे होत्था / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003479
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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