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________________ षष्ठ अध्ययन ] [71 ४-उस काल उस समय में मथुरा नगरी में भगवान महावीर स्वामी पधारे। परिषद् व राजा भगवान् की धर्मदेशना श्रवण करने नगर से निकले, यावत् धर्मदेशना सुनकर वापिस चले गये। गौतम स्वामी का प्रश्न ५-तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स जे? जाव' रायमगमोगाढे। तहेव हत्थी, प्रासे, पुरिसे, पासइ / तेसि च पुरिसाणं मझगयं एगं पुरिसं पासइ जाव नरनारिसंपरिवुडं / तए णं तं पुरिसं रायपुरिसा चच्चरंसि तत्तंसि प्रयोमयंसि समजोइभूयसीहासणंसि निवेसावेति / तयाणंतरं च णं पुरिसाणं मझगयं पुरिसं बहुविहअयकलसेहि तत्तेहिं समजोइभूएहि, अप्पेगइया तंबभरिएहि, अप्पेगइया तउयभरिएहि, अप्पेगइया सीसग-भरिएहि. अप्पेगइया कलकलभरिएहि, अप्पेगइया खारतेल्लभरिएहि, महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचंति / तयाणंतरं च णं तत्तं प्रयोमयं समजोइ-भूयं अयोमयसंडासएण गहाय हारं पिणद्धति / तयाणंतरं च णं अद्धहारं पिणद्धति जाव (तिसरियं पिणद्धति, पाल बं पिणद्धति, कडिसुत्तयं पिणद्धति, पट्ट पिणद्धति, मउड़) पिणद्धति / चिन्ता तहेव जाव वागरेइ / ५-उस समय भगवान् महावीर के प्रधान शिष्य गौतम स्वामी भिक्षा के लिये नगरी में पधारे। भिक्षा ग्रहण करके लौटते हए यावत राजमार्ग पर पधारे। वहाँ उन्होंने (पूर्ववत) हाथियों, घोड़ों और पुरुषों को देखा, तथा उन पुरुषों के मध्य में यावत् बहुत से नर-नारियों के वृन्द से घिरे हुए एक पुरुष को देखा / राजपुरुष उस पुरुष को चत्वर--जहाँ बहुत से रास्ते मिलते हों ऐसे स्थान में अग्नि के समान-सन्तप्त लोहमय सिंहासन पर बैठाते हैं। बैठाकर कोई-कोई राजपुरुष उसको अग्नि के समान उष्ण लोहे से परिपूर्ण, कोई ताम्रपूर्ण, कोई त्रपु-रांगा से पूर्ण, कोई सीसा से पूर्ण, कोई कलकल से पूर्ण, अथवा कलकल शब्द करते हुए अत्युष्ण पानी से परिपूर्ण, क्षारयुक्त तैल से पूर्ण, अग्नि के समान तपे कलशों के द्वारा महान् राज्याभिषेक से उसका अभिषेक करते हैं / तदनन्तर उसे, लोहमय संडासी से पकड़कर अग्नि के समान तपे हुए अयोमय--अठारह लड़ियों वाले हार, अर्द्ध हार-नौ लड़ी वाले हार, तीन लड़ी वाले हार को, कोई प्रालम्ब-लम्बी लटकती माला, कोई करधनी, कोई मस्तक के पट्टवस्त्र अथवा भूषणविशेष और कोई मुकुट पहिनाते हैं। यह भयावह दृश्य देखकर श्री गौतमस्वामी को पूर्ववत् विचार उत्पन्न हुआ—यह पुरुष नारकीय वेदना भोग रहा है, आदि / यावत् गौतमस्वामी उस पुरुष के पूर्वभव सम्बन्धी वृत्तान्त को भगवान् से पूछते हैं / भगवान् उत्तर में इस प्रकार कहते हैंभगवान का उत्तर : नन्दिषेण का पूर्वभव ६–एवं खलु गोयमा। तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे सोहपुरे नाम 1. द्वि. अ., सूत्र 6 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003479
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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