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________________ तृतीय अध्ययन ] [ 57 दिवसे सूलभिन्ने कए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसं सागरोवमट्टिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ / ' से गं तो अणंतरं उध्वट्टित्ता, एवं संसारो जहा पढमे जाव वाउ-तेउ-पाउ-पुढवीसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो भुज्जो पच्चायाइस्सइ ! तो उन्वट्टित्ता वाणारसीए नयरीए सयरत्ताए पच्चायाहिइ / से णं तत्थ सूरिएहि जोवियानो ववरोविए समाणे तत्थेव वाणारसीए नयरीए सेट्टिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ / से गं तत्थ उम्मुक्कबालभावे-‘एवं जहा पढमे, जाव अंतं काहिइ / ' ३२-गौतम स्वामी ने प्रश्न किया-अहो भगवन ! वह अभग्नसेन चोरसेनापति कालावसर में काल करके कहाँ जाएगा ? तथा कहाँ उत्पन्न होगा? / भगवान ने उत्तर दिया-हे गौतम ! अभग्नसेन चोरसेनापति 37 वर्ष की परम आयुष्य को भोगकर आज ही त्रिभागावशेष (जिसका तीसरा भाग बाकी हो, ऐसे) दिन में सूली पर चढ़ाये जाने से काल करके (मृत्यु को प्राप्त होकर) रत्नप्रभानामक प्रथम नरक में नारकी रूप से, जिसकी उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम की है, उत्पन्न होगा। फिर प्रथम नरक से निकलकर प्रथम अध्ययन में प्रतिपादित मृगापुत्र के संसारभ्रमण की तरह इसका भी परिभ्रमण होगा, यावत् पृथ्वीकाय, अपकाय, वायु काय तेजस्काय आदि में लाखों वार उत्पन्न होगा। वहाँ से निकलकर बनारस नगरी में शूकर के रूप में उत्पन्न होगा। वहाँ शूकर के शिकारियों द्वारा उसका घात किया जाएगा। तत्पश्चात् उसी बनारस नगरी के श्रेष्ठिकुल में पुत्र रूप से उत्पन्न होगा। वहाँ बालभाव को पार करके युवावस्था को प्राप्त होता हुआ, प्रवजित होकर, संयमपालन करके यावत् निर्वाण पद प्राप्त करेगा-जन्म-मरण का अन्त करेगा। निक्षेप-उपसंहार पूर्ववत् समझ लेना चाहिये / // तृतीय अध्ययन समाप्त / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003479
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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