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________________ तृतीय अध्ययन : अभग्नसेन ] [ 55 २८-तदनन्तर वे कौटुम्बिक पुरुष महाबल नरेश की इस प्राज्ञा को दोनों हाथ जोड़कर यावत् अञ्जलि करके 'जी हाँ स्वामी' कहकर विनयपूर्वक सुनते हैं और सुनकर पुरिमताल नगर से निकलते हैं। छोटी-छोटी यात्राएँ करते हुए, तथा सुखजनक विश्राम-स्थानों पर प्रातःकालीन भोजन आदि करते हुए जहाँ शालाटवी नामक चोर-पल्ली थी वहाँ पहुंचे। वहाँ पर अभग्नसेन चोरसेनापति से दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर दस नखों वाली अंजुलि करके इस प्रकार निवेदन करने लगे देवानुप्रिय ! पुरिमताल नगर में महाबल नरेश ने उच्छुल्य यावत् दस दिनों का प्रमोद उत्सव उद्घोषित किया है, तो क्या आपके लिये अशन, पान, खादिम, स्वादिम, पुष्पमाला अलंकार यहाँ पर ही उपस्थित किये जाएँ अथवा अाप स्वयं वहाँ पधारते हैं? तब अभग्नसेन सेनापति ने कौटुम्बिक पुरुषों को उत्तर में इस प्रकार कहा-'हे भद्र पुरुषो! मैं स्वयं ही प्रमोद-उत्सव में पुरिमताल नगर में आऊँगा।' तत्पश्चात् अभग्नसेन ने उनका उचित सत्कार-सम्मान करके उन्हें विदा किया। २६-तए णं से प्रभग्गसणे चोरसेणावई बहूहि मित्त जाव परिवुडे व्हाए जाब पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए सालाडवीमो चोरपल्लीनो पडिनिक्खमह / पडिनिक्खमित्ता जेणेव पुरिमताले नयरे, जेणेव महाबले राया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता, करयल० महाबलं रायं जएणं विजएणं बद्धावेइ, बद्धावेत्ता महत्थं जाव पाहुडं उवणेइ / तए णं से महाबले राया, अभग्गसेणस्स चोरसेणावइस्स तं महत्थं जाव पडिच्छइ, अभग्गसेणं चोरसेणावई सक्कारेइ, सम्माणेइ, पडिविसज्जेइ, कूडागारसालं च से श्रावसह दलया। तए णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई महाबलेणं रण्णा विसज्जिए समाणे जेणेव कूडागारसाला तेणेव उवागच्छइ। २६-तदनन्तर मित्र, ज्ञाति व स्वजन-परिजनों से घिरा हुआ वह अभग्नसेन चोरसेनापति स्नानादि से निवृत्त हो यावत् अशुभ स्वप्न का फल विनष्ट करने के लिये प्रायश्चित्त के रूप में मस्तक पर तिलक आदि माङ्गलिक अनुष्ठान करके समस्त आभूषणों से अलंकृत हो शालाटवी चोरपल्ली से निकलकर जहाँ पुरिमताल नगर था और जहाँ महाबल नरेश थे, वहां पर पाता है। पाकर दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर दश नखों वाली अञ्जलि करके महाबल राजा को 'जय-विजय शब्द से बधाई देता है / बधाई देकर महार्थ यावत् राजा के योग्य प्राभूत-भेंट अर्पण करता है। तदनन्तर महाबल राजा उस अभग्नसेन चोरसेनापति द्वारा अर्पित किए गए उपहार को स्वीकार करके उसे सत्कार-सम्मानपूर्वक-अपने पास से विदा करता हुआ कुटाकारशाला में उसे रहने के लिये स्थान देता है / तदनन्तर अभग्नसेन चोरसेनापति महाबल राजा के द्वारा सत्कारपूर्वक विसजित होकर कूटाकारशाला में आता है और वहाँ पर ठहरता है / ३०-तए णं से महाबले राया कोडुबियपुरिसे सहावेइ, सद्दावेत्ता एवं क्यासी-'गच्छह णं तुम्भे देवाणप्पिया! विउलं असणं पाणं खाइम साइम उवक्खडावेह, उववखडावेत्ता तं विउलं असणं-४, सुरं च-५, सुबहुं पुप्फवत्थ-गंध-मल्लालंकारं च प्रभग्गसेणस्स चोरसेणाव इस्स कूडगारसाल उवणेह / तए णं से कोडुबियपुरिसा करयल जाव उवणेति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003479
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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