________________ प्रकाशकीय श्रमण भगवान महावीर की २५वीं निर्वाण शताब्दी के पावन प्रसंग को स्मरणीय बनाने के लिए एक उत्साहपूर्ण वातावरण निर्मित हया था / शासकीय एवं सामाजिक स्तर पर विभिन्न योजनायें बनीं। उसमें भगवान महावीर के लोकोत्तर जीवन और उनकी कल्याणकारी शिक्षाओं से सम्बन्धित साहित्य प्रकाशन को प्रमुखता दी गई थी। स्वर्गीय श्रद्धेय युवाचार्य श्री मधुकर मुनिजी म. सा. ने विचार किया कि अन्यान्य प्राचार्यों द्वारा रचित साहित्य को प्रकाशित करने के बजाय प्रागमों के रूप में उपलब्ध भगवान् की साक्षात् देशना का प्रचार-प्रसार करना विश्वकल्याण का प्रमुख कार्य होगा। युवाचार्य श्री जी को इस विचार का चविध संघ ने सहर्ष समर्थन किया और पागम बत्तीसी के प्रकाशित करने की घोषणा कर दी। शुद्ध मूलपाठ व सरल सुबोध भाषा में अनुवाद, विवेचन युक्त आगमों का प्रकाशन प्रारम्भ होने पर दिनोंदिन पाठकों की संख्या में वद्धि होती गयी तथा अनेक विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में भी समिति के प्रकाशित प्रागम ग्रन्थों के निर्धारित होने से शिक्षार्थियों की भी मांग बढ़ गई / इस कारण प्रथम संस्करण की अनुमानित संख्या से अधिक मांग होने एवं देश-विदेश के सभी ग्रन्थभंडारों, धर्मस्थानों में प्रागमसाहित्य को उपलब्ध कराने के विचार से अनुपलब्ध प्रागमों के पुनर्मुद्रण कराने का निश्चय किया गया। तदनुसार अभी तक आचारांगसूत्र, प्रथम भाग, उपासकदशांगसूत्र के द्वितीय संस्करण प्रकाशित हो गये हैं और अब ज्ञातधर्मकथांगसूत्र का प्रकाशन हो रहा है / समय क्रम से अन्य आगमों के भी द्वितीय संस्करण प्रकाशित किये जायेंगे। प्रबुद्ध संता, विद्वानों और समाज ने प्रकाशनों की प्रशंसा करके हमारे उत्साह का संवर्धन किया है और सहयोग दिया है, उसके लिए आभारी हैं तथा पाठकों से अपेक्षा है कि प्रागम साहित्य का अध्ययन करके जिनवाणी के प्रचार-प्रसार में सहयोगी बनेंगे। इसी प्राशा और विश्वास के साथ रतनचन्द मोदी कार्यवाहक अध्यक्ष सायरमल चोरडिया महामंत्री श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर अमरचन्द मोदी मंत्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org