________________ पशम अध्ययन : उत्क्षिप्तज्ञात सार : संक्षेप प्रथम अध्ययन में राजगृह नगर (मगध) के अधिपति महाराज श्रेणिक के सुपुत्र मेघकुमार का आदर्श जोवन अंकित किया गया है, किन्तु इसका नाम 'उक्खित्तणाए' है / यह नाम इस अध्ययन में वणित एवं मेघ के पूर्वभव में घटित एक महत्त्वपूर्ण घटना पर आधारित है। उस घटना ने एक हाथी जैसे पशु को मानव और फिर अतिमानव-सिद्ध परमात्मा के सर्वोच्च पद पर प्रतिष्ठित कर दिया। आत्मा अनादि-अनन्त चिन्मय तत्त्व है। राग-द्वेष प्रादि विकारों से ग्रस्त होने के कारण वह विभिन्न अवस्थाओं में जन्म-मरण करता है / एक अवस्था से दूसरी अवस्था में जाना ही संसरण या संसार कहलाता है / कभी अधोगति के पाताल में तो कभी उच्चगति के शैल-शिखर पर वह प्रारूढ होता है / इस चढ़ाव-उतार का मूल कारण स्वयं प्रात्मा ही है / सत् संयोग मिलने पर आत्मा जब अपने सच्चे स्वरूप को समझ लेता है तब अनुकूल पुरुषार्थ करके अपने विशुद्ध स्वरूप को प्राप्त करके अनन्त-असीम आत्मिक वैभव को अधिगत कर लेता है शाश्वत एवं अव्याबाध सुख का स्वामी बन जाता है / मेघकुमार के जीवन में यही घटित हुआ। प्रस्तुत अध्ययन में मेघकुमार के तीन भवों-जन्मों का दिग्दर्शन कराया गया है और दो भावी भवों का उल्लेख है / अतीत तीसरे भव में वह जंगली हाथी था / जंगल में दावानल सुलगता है। प्राणरक्षा के लिए वह इधर-उधर भागता-दौड़ता है। भूखा-प्यासा वह पानी पीने के विचार से कीचड़-भरे तालाब में प्रवेश करता है। पानी तक पहुँचने से पहले ही कीचड़ में फँस जाता है। उबरने का प्रयत्न करता है पर परिणाम विपरीत होता है-अधिकाधिक कीचड़ में धंसता जाता है। विवश, लाचार, असहाय हो जाता है / संयोगवश, उसी समय एक दूसरा तरुण हाथी, जो उसका पूर्व वैरी था, वहाँ आ पहुँचता है और वैर का स्मरण करके अपने तीखे दन्त-शूलों से प्रहार करके उसकी जीवन-लीला समाप्त कर देता है / कलुषित परिणामों-मार्तध्यान-के कारण हाय-हाय करता हुआ वह प्राणत्याग करके पुनः हाथी के रूप में-पशुगति में उत्पन्न होता है। वनचर उसका नाम 'मेरुप्रभ' रखते हैं। संयोग की बात, जंगल में पुनः दावानल का प्रकोप होता है। सारा जंगल धांय-धांय कर ग्राग की लपटों से व्याप्त हो जाता है / मेरुप्रभ फिर अपने यूथ-झुड के साथ इधर-उधर भागतादौड़ता और प्राण रक्षा करता है। किन्तु इस बार दावानल का लोमहर्षक दृश्य देखकर अतीत भव का एक धुंधला-अस्पष्ट-सा चित्र उसके कल्पना-नेत्रों में उभरता है। वह विचारों की गहराई में उतरता है और उसे शुभ अध्यवसाय, लेश्याविशुद्धि एवं ज्ञानावरणकर्म के विशिष्ट क्षयोपशम से जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो जाता है / इस ज्ञान से अपने पूर्वभवों को जाना जा सकता है। मेरुप्रभ हाथी को जातिस्मरण से पूर्व जन्म की घटना विदित हो गई। दावानल का भी स्मरण हो पाया। तब उसने बार-बार उत्पन्न होने वाली इस विपदा से छुटकारा पाने के लिए एक-मंडल-घास-फूस, पेड़-पौधों से रहित, साफ-सफाचट मैदान तैयार किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org