________________ परिशिष्ट---१] [563 २--जह मल्लिस्स महाबलभवम्मि तित्थगरनामबंधे वि। तवविसय-थेवमाया जाया जवइत्तहेउत्ति / / १-उग्रतप तथा संयमवान् एवं उत्कृष्ट फल के साधक जीव द्वारा की गई सूक्ष्म और धर्मविषयक माया भी अनर्थ का कारण होती है, यथा २-मल्ली कुमारी को महाबल के भव में तीर्थकरनामकर्म का बंध होने पर भी तप के विषय में की गई थोड़ी-सी माया भी युवतीत्व (स्त्रीत्व) का कारण बन गई। नौवां अध्ययन १-जह रयणदीवदेवी, तह एत्थं अविरई महापावा। जह लाहत्थी वणिया, तह सुहकामा इहं जीवा // २–जह तेहिं भीएहि, दिट्ठो आघायमंडले पुरिसो। ___संसारदुक्खभीया, पासंति तहेव धम्मकहं // ३–जह तेण तेसि कहिया, देवी दुक्खाण कारणं घोरं / तत्तो च्चिय नित्थारो, सेलगजक्खाओ नन्नत्तो। ४---तह धम्मकही भव्वाणं, साहए दिट्ठ-अविरइ-सहावो। सयलदुहहेउभूआ, विसया विरयंति जीवाणं // ५–सत्ताणं दुहत्ताणं, सरणं चरणं जिगिंदपण्णत्तं / आनन्दरूव-निव्वाण-साहणं तह य देसेइ / / ६-जह तेसि तरियम्वो, रुदसमुद्दो तहेव संसारो। जह तेसि सगिहगमणं, निव्वाणगमो तहा एत्थं / / ७-जह सेलगपिट्ठाओ, भट्ठो देवीइ मोहियमईओ। सावय-सहस्स-पउरंमि, सायरे पाविओ निहणं // ८--तह अविरईइ नडिओ, चरणचुओ दुक्ख-सावयाइण्णो। निवडइ अपार-संसार-सायरे दारुणसरूवे / / ९-जह देवीए अक्खोहो, पत्तो सट्टाणं जीवियसुहाई। तह चरणट्ठिओ साहू, अक्खोहो जाइ निव्वाणं // 1- रत्नद्वीप की देवी के स्थान पर यहाँ महापापमय अविरति समझना चाहिए / लाभ के अभिलाषी वणिकों की जगह यहाँ सुख की कामना करने वाले जीव समझना चाहिए। २-जैसे उन्होंने (जिनरक्षित और जिनपाल नामक वणिकों ने) प्राघात-मंडल में एक पुरुष को देखा, उसी प्रकार संसार से भयभीत जन धर्मकथा (धर्मकथा करने वाले उपदेशक) को देखते हैं। ३-जैसे उस पुरुष ने उन्हें बतलाया कि यह (रत्न देवी) घोर दुःखों का कारण है और उससे निस्तार पाने का उपाय शैलक यक्ष के सिवाय अन्य नहीं है। ४-उसी प्रकार अविरति के स्वभाव को जानने वाले धर्मोपदेशक भव्य जीवों से कहते हैंइन्द्रियों के विषय समस्त दुःखों के हेतु हैं, अतः वे जीवों को उनसे विरत करते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org