________________ परिशिष्ट ~1] [ 561 १-जैसे मिट्टी के लेप से भारी होकर तुम्बा जल के तल में चला जाता है, इसी प्रकार आस्रव द्वारा उपार्जित कर्मों से भारी होकर जीव अधोगति में जाता है / २-जैसे वही तुम्बा मिट्टी के लेप से विमुक्त होने पर, लघु होकर जल के ऊपर स्थित होता है, वैसे ही कर्म से विमुक्त जीव लोक के अग्र-ऊपरी भाग में प्रतिष्ठित-विराजमान हो जाते हैं / सप्तम अध्ययन १-जह सेट्टी तह गुरुणो, जह पाइजणो तहा समणसंघो। जह बहुया तह भव्वा, जह सालिकणा तह वयाई // २–जह सा उज्झियणामा, उज्झियसाली जहत्थमभिहाणा / पेसण-गारित्तेणं, असंखदुक्खक्खणी जाया / ३–तह भन्वो जो कोई, संघसमक्खं गुरुविदिण्णाई / पिडिवज्जिउं समुज्झइ, (महव्वयाई महामोहा // ४–सो इह चेव भवम्मि, जणाण धिक्कारभायणं होइ / परलोए उ दुहत्तो, नाणाजोणीसु संचरइ / ५–जह वा सा भोगवती, जहत्थनामोवभुत्तसालिकणा। पेसविसेसकारितणेण पत्ता दुहं चेव // ६-तह जो महन्वयाई उवभंजुइ जीवियत्ति पालितो। आहाराइसु सत्तो, चत्तो सिवसाहणिच्छाए / ७–सो इत्थ जहिच्छाए, पावइ आहारमाइ लिगित्ति / विउसाण नाइपुज्जो परलोयम्मि दुही चेव / / ८-जइ वा रक्खिय बहुया, रक्खियसालीकणा जहत्थक्खा। परिजणमण्णा जाया, भोगसुहाइं च संपत्ता // ९-तह जो जीवो सम्म पडिवज्जिज्जा महब्वए पंच / पालेइ निरइयारे, पमायलेसंपि वज्जैतो // १०---सो अप्पहिएक्करई, इहलोयंमि वि विहिं पणयपओ। एगंतसुही जायइ, परम्मि मोक्खं पि पावेइ / / ११–जह रोहिणी उ सुष्हा, रोवियसाली जहत्थमभिहाणा / वड्डित्ता सालिकणे पत्ता सव्वस्स सामित्तं / / १२-तह जो भवो पाविय वयाई पालेइ अप्पणा सम्मं / अन्नेसि पि भव्वाणं देइ अणेगेसि हियहेउं / १३-सो इह संघपहाणो, जुगप्पहाणेत्ति लहइ संसदं / अप्प-परेसि कल्लाणकारओ गोयमपहुव्व // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org