________________ 548 ] [ ज्ञाताधर्मकथा रूपा भूतानन्द नामक इन्द्र की अग्रमहिषी के रूप में जन्मी / उसकी स्थिति कुछ कम एक पल्योपम की है। यहाँ चौथे वर्ग के प्रथम अध्ययन का निक्षेप समझ लेना चाहिए, अर्थात् यह कहना चाहिए कि श्रमण भगवान महावीर यावत् सिद्धिप्राप्त ने चतुर्थ वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है। 2-6 अध्ययन ६३---एवं सुरूया वि, रूयंसा वि, रूयगावई वि, रूयकता वि रूयप्पभा वि। इसी प्रकार सुरूपा भी, रूपांशा थी, रूपवती भी, रूपकान्ता भी और रूपप्रभा के विषय में भी समझ लेना चाहिए, अर्थात इन पांच देवियों के पांच अध्ययन भी ऐसे हो जानने चाहिए / 7-54 अध्ययन ६४–एयाओ चेव उत्तरिल्लाणं इंदाणं भाणियवाओ जाव ( वेणुदालिस्स हरिस्सहस्स अग्गिमाणवस्स विसिटुस्स, जलप्पभस्स अमितवाहणस्स पभंजणस्स) महाघोसस्स / निक्खेवओ चतुत्थवग्गस्स / इसी प्रकार उत्तर दिशा के इन्द्रों की छह-छह पटरानियों के छह-छह अध्ययन कह लेना चाहिए, अर्थात् वेणुदाली, हरिस्सह अग्निमाणवक, विशिष्ट, जलप्रभ, अमितवाहन, प्रभंजन तथा महाघोष की पटरानियों के छह-छह अध्ययन होते हैं / सब मिलकर चौपन अध्ययन हो जाते हैं। यहाँ चौथे वर्ग का निक्षेप--उपसंहार पूर्ववत् कह लेना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org