________________ द्वितीय श्रुतस्कन्ध अध्ययन : प्रथम वर्ग ] [ 527 यावत् सुधर्मास्वामी की उपासना करते हुए बोले-'भगवन् ! यदि यावत् सिद्धि को प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने छठे अंग के 'ज्ञातश्रुत' नामक प्रथम श्रुतस्कंध का यह (पूर्वोक्त) अर्थ कहा है, तो भगवन् ! धर्मकथा नामक द्वितीय श्रुतस्कंध का सिद्धपद को प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने क्या अर्थ कहा है ? सुधर्मास्वामी का उत्तर ४–एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं धम्मकहाणं दस वग्गा पन्नत्ता, तंजहा(१) चमरस्स अग्गमहिसीणं पढमे वग्गे। (2) बलिस्स वइरोणिदस्स वइरोयणरण्णो अग्गमहिसोणं बीए वग्गे। (3) असुरिंदवज्जियाणं दाहिणिल्लाणं भवणवासीणं इंदाणं अग्गमहिसोणं तइए वग्गे / (4) उत्तरिल्लाणं असुरिंदवज्जियाणं भवणवासिइंदाणं अग्गमहिसीणं चउत्थे वग्गे। (5) दाहिणिल्लाणं वाणमंतराणं इंदाणं अग्गमहिसोणं पंचमे वग्गे। (6) उत्तरिल्लाणं वाणमंतराणं इंदाणं अग्गहिसीणं छठे वग्गे। (7) चंदस्स अग्गमहिसोणं सत्तमे वगे। (8) सूरस्स अग्गमहिसीणं अट्टमे वग्गे / (9) सक्कस्स अग्गमहिसीणं णवमे वग्गे / (10) ईसाणस्स अग्गमहिसीणं दसमे वग्गे / श्री सुधर्मास्वामी ने उत्तर दिया-'इस प्रकार हे जम्बू ! यावत् सिद्धिप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने धर्मकथा नामक द्वितीय श्रुतस्कंध के दस वर्ग कहे हैं / वे इस प्रकार हैं--- (1) चमरेन्द्र की अग्नमहिषियों (पटरानियों) का प्रथम वर्ग / (2) वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि (बलीन्द्र) की अग्रमहिषियों का दूसरा वर्ग / (3) असुरेन्द्र को छोड़ कर शेष नौ दक्षिण दिशा के भवनपति इन्द्रों की अग्रमहिषियों का तीसरा वर्ग। (4) असुरेन्द्र के सिवाय नौ उत्तर दिशा के भवनपति इन्द्रों की अग्रमहिषियों का चौथा वर्ग / (5) दक्षिण दिशा के वाणव्यन्तर देवों के इन्द्रों की अग्रमहिषियों का पांचवाँ वर्ग / (6) उत्तर दिशा के वाणव्यन्तर देवों के इन्द्रों की अग्नमहिषियों का छठा वर्ग / (7) चन्द्र की अग्रमहिषियों का सातवा वर्ग / (8) सूर्य की अनमहिषियों का आठवाँ वर्ग। (9) शक्र इन्द्र की अग्रमहिषियों का नौवां वर्ग और (10) ईशानेन्द्र की अग्रमहिषियों का दसवाँ वर्ग / ५-जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं धम्मकहाणं दस वग्गा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते ! वग्गस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पण्णते ? एवं खलु जंबू ! समजेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहा.(१) काली (2) राई (3) रयणी (4) विज्जू (5) मेहा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org