________________ [ ज्ञाताधर्मकथा तत्पश्चात् वे वासुदेव आदि नृपतिगण अलग-अलग यावत् हस्तिनापुर की ओर गमन करने के लिए उद्यत हुए। १३१-तए णं पंडुराया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावित्ता एवं वयासी-'गच्छह णं तुम्भे देवाणुपिया ! हस्थिणाउरे पंचण्हं पंडवाणं पंच पासायडिसए कारेह, अब्भुगयभूसिय वण्णओ जाव' पडिरूवे। तत्पश्चात् पाण्डु राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार आदेश दिया'देवानुप्रियो ! तुम जाओ और हस्तिनापुर में पाँच पाण्डवों के लिए पाँच उत्तम प्रासाद बनवाओ, वे प्रासाद खूब ऊँचे हों और सात भूमि (मंजिल) के हों इत्यादि वर्णन यहां पूर्ववत् कहना चाहिए, यावत् वे अत्यन्त मनोहर हों। १३२--तए णं ते कोडुबियपुरिसा पडिसुणेति जाव करावेति / तए णं से पंडुए पंचहि पंडवेहि दोवईए देवीए सद्धि हयगयसपरिवुडे कंपिल्लपुराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव हत्थिणाउरे तेणेव उवागए। तब कौटुम्बिक पुरुषों ने यह आदेश अंगीकार किया, यावत् उसी प्रकार के प्रासाद बनवाये। तव पाण्डु राजा पाँचों पाण्डवों और द्रौपदी देवी के साथ अश्वसेना, गजसेना आदि से परिवृत होकर कांपिल्यपुर नगर से निकल कर जहाँ हस्तिनापुर था, वहां आ पहुंचा। १३३–तए णं पंडुराया तेसि वासुदेवपामोक्खाणं आगमणं जाणित्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दाविता एवं क्यासी-'गच्छह गं तुब्भे देवाणुप्पिया ! हत्यिणाउरस्स नयरस्स बहिया वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं आवासे कारेह अणेगखंभसयसणिविट्ठ' तहेव जाव पच्चप्पिणति / तत्पश्चात् पाण्डु राजा ने उन वासुदेव आदि राजाओं का प्रागमन जान कर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनसे कहा---'देवानुप्रियो ! तुम जानो और हस्तिनापुर नगर के बाहर वासुदेव आदि बहुत हजार राजारों के लिए आवास तैयार कराम्रो जो अनेक सैकड़ों स्तंभों आदि से युक्त हों इत्यादि पूर्ववत् कह लेना चाहिए।' कौटुम्बिक पुरुष उसी प्रकार प्राज्ञा का पालन करके यावत् प्राज्ञा वापिस करते हैं। १३४–तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा जेणेव हत्यिणाउरे नयरे तेणेव उवागच्छति। तए णं से पंडुराया तेसि वासुदेवपामोक्खाणं आगमणं जाणित्ता हट्ठतुठे हाए कयबलिकम्मे जहा दुपए जाव जहारिहं आवासे दलयइ। तए णं ते वासुदेवपामुक्खा बहवे रायसहस्सा जेणेव सयाई सयाई आवासाई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तहेव जाव विहरति / तत्पश्चात् वे वासुदेव वगैरह हजारों राजा हस्तिनापुर नगर में आये / 1. श्र.१ सूत्र 103 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org