________________ चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र ]] [ 365 २२-~'एवं खलु देवाणुप्पिया! कणगरहे राया रज्जे य जाव वियंगेइ, अयं च णं दारए कणगरहस्स पुत्ते पउमावईए अत्तए, तेणं तुमं देवाणुप्पिया ! इमं दारगं कणगरहस्स रहस्सियं चेव अणुपुब्वेणं सारक्खाहि य, संगोवेहि य, संवड्ढेहि य / तए णं एस दारए उम्मुक्कबालभावे तव य मम य पउमावईए य आहारे भविस्सइ, त्ति कटु पोट्टिलाए पासे णिक्खिवइ, पोट्टिलाए पासाओ तं विणिहायमावन्नियं दारियं गेण्हइ, गेण्हित्ता उत्तरिज्जेणं पिहेइ, पिहिता अंतेउरस्स अवद्दारेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव पउमावई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पउमावईए देवीए पासे ठावेइ, ठावित्ता जाव पडिनिग्गए। देवानुप्रिये ! कनकरथ राजा राज्य आदि में यावत् अतीव आसक्त होकर अपने पुत्रों को यावत् अपंग कर देता है और यह बालक कनकरथ का पुत्र और पद्मावती का आत्मज है, अतएव देवानप्रिय ! इस बालक का, कनकरथ से गुप्त रख कर अनक्रम से संरक्षण, संगोपन और संवर्धन करना / इससे यह बालक बाल्यावस्था से मुक्त होकर तुम्हारे लिए, मेरे लिए और पद्मावती देवी के लिए आधारभूत होगा, इस प्रकार कह कर उस बालक को पोट्टिला के पास रख दिया और पोट्टिला के पास से मरी हुई लड़की उठा ली / उठा कर उसे उत्तरीय वस्त्र से ढंक कर अन्तःपुर के पिछले छोटे द्वार से प्रविष्ट हुना और पद्मावती देवी के पास पहुँचा / मरी लड़की पद्मावती देवी के पास रख दी और वह वापिस चला गया। २३--तए णं तोसे पउमावईए अंगपडियारियाओ पउमावइं देवि विणिहायमावन्नियं च दारियं पयायं पासंति, पासित्ता जेणेव कणगरहे राया तेणेव उवागच्छंति, उवाच्छित्ता करयल जाव' एवं वयासी-'एवं खलु सामी ! पउमावई देवी मइल्लियं दारियं पयाया।' तत्पश्चात् पद्मावती की अंगपरिचारिकाओं ने पद्मावती देवी को और विनिघात को प्राप्त (मृत) जन्मी हुई बालिका को देखा / देख कर जहाँ कनकरथ राजा था, वहाँ पहुँच कर दोनों हाथ जोड़कर इस प्रकार कहने लगीं-'स्वामिन् ! पद्मावती देवी ने मृत बालिका का प्रसव किया है।' २४-तए णं कणगरहे राया तीसे मइल्लियाए दारियाए नोहरणं करेइ, बहूणि लोइयाई मयकिच्चाई करेइ, कालेणं विगयसोए जाए। तत्पश्चात् कनकरथ राजा ने मरी हुई लड़की का नीहरण किया अर्थात् उसे श्मशान में ले गया / बहुत-से मृतक संबंधी लौकिक कार्य किये / कुछ समय के पश्चात् राजा शोक-रहित हो गया / २५-तए णं तेयलिपुत्ते कल्ले कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी—'खिप्पामेव चारगसोधनं करेह जाव ठिइवडियं दसदेवसियं करेह कारवेह य, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।' जम्हा णं अम्हं एस दारए कणगरहस्स रज्जे जाए, तं होउ णं दारए नामेणं कणगज्झए जाव अलं भोगसमत्थे जाए। / तत्पश्चात् दूसरे दिन तेतलिपुत्र ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुला कर कहा--'हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही चारक शोधन करो, अर्थात् कैदियों को कारागार से मुक्त करो / यावत् दस १-प्र. 14 सूत्र 8. २-अ. 1 सूत्र 101 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org