________________ तेरहवां अध्ययन : द१रज्ञात ] [ 347 नंद की रुग्णता २१–तए णं तस्स नंदस्स मणियारसेट्ठिस्स अन्नया कयाई सरीरगंसि सोलस रोगायंका पाउन्भूया, तंजहासासे कासे जारे दाहे, कुच्छिसूले भगंदरे। अरिसा अजीरए दिट्टि मुद्धसूले अगारए' // 1 // अच्छिवेयणा कन्नवेयणा कंडू दउदरे कोढे / तए णं से गंदे मणियारसेट्ठी सोलसहि रोगायंकेहि अभिभूते समाणे कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं बयासी-'गच्छह णं तुम्भे देवाणुप्पिया! रायगिहे नयरे सिंघाडग जाव' महापहपहेसु महया महया सद्देणं उग्धोसेमाणा उग्रोसेमाणा एवं वयह-'एवं खलु देवाणुप्पिया ! णंदस्स मणियारसेटिस्स सरीरगंसि सोलस रोगायंका पाउन्भूया, तंजहा-सासे य जाव कोढे / तं जो णं इच्छइ देवाणुप्पिया ! वेज्जो वा वेज्जपुत्तो वा जाणुओ वा जाणुअपुत्तो वा कुसलो वा कुसलपुत्तो वा नंदस्स मणियारस्स तेसि च सोलसहं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकं उवसामेत्तए, तस्स णं देवाणुप्पिया ! नंदे मणियारे विउलं अत्थसंपयाणं दलयइ त्ति कटु दोच्चं पि तच्चं पि घोसणं घोसेह। घोसित्ता जाव [एयमाणत्तियं] पच्चप्पिणह।' ते वि तहेव पच्चप्पिणंति / / कुछ समय के पश्चात् एक बार नंद मणिकार सेठ के शरीर में सोलह रोगातंक अर्थात् ज्वर आदि रोग और शूल आदि आतंक उत्पन्न हुए। वे इस प्रकार थे--(१) श्वास (2) कास-खांसी (3) ज्वर (4) दाह-जलन (5) कुक्षि-शूल-कूख का शूल (6) भगंदर (7) अर्श-बवासीर (8) अजीर्ण (9) नेत्रशूल (10) मस्तकशूल (11) भोजनविषयक अरुचि (12) नेत्रवेदना (13) कर्णवेदना (१४)कंड-खाज (15) दकोदर-जलोदर और (16) कोढ़ / नंद मणिकार इन सोलह रोगातंकों से पीड़ित हुआ / तब उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा–'देवानुप्रियो ! तुम जानो और राजगृह नगर में शृगाटक यावत् छोटे-मोटे मार्गों में अर्थात् गली-गली में ऊँची आवाज से घोषणा करते हुए कहो --'हे देवानुप्रियो ! नंद मणिकार श्रेष्ठी के शरीर में सोलह रोगातंक उत्पन्न हुए हैं, यथा-श्वास से कोढ़ तक / तो हे देवानुप्रियो ! जो कोई वैद्य या वैद्यपुत्र, जानकार या जानकार का पुत्र, कुशल या कुशल का पुत्र, नंद मणिकार के उन सोलह रोगातंकों में से एक भी रोगातंक को उपशान्त करना चाहे-मिटा देगा, देवानुप्रियो ! नंद मणिकार उसे विपुल धन-सम्पत्ति प्रदान करेगा। इस प्रकार दूसरी बार और तीसरी बार घोषणा करो / घोषणा करके मेरी यह आज्ञा वापिस लौटाओ।' कौटुम्बिक पुरुषों ने आज्ञानुसार कार्य करके अर्थात् राजगृह की गली-गली में घोषणा करके आज्ञा वापिस सौंपी। २२-तए णं रायगिहे णयरे इमेयारूवं घोसणं सोच्चा णिसम्म बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाव कुसलपुत्ता य सत्थकोसहत्थगया य सिलियाहत्थगया य गुलियाहत्थगया य ओसहभेसज्जहत्थगया य सहि सएहिं गेहेहितो निक्खमंति, निक्खमित्ता रायगिहं मज्झमाझेणं जेणेव णंदस्स मणियारसेटिस्स गिहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता णंदस्स मणियारसेट्ठिस्स सरीरं पासंति, 1. पाठान्तर-'अकारए / ' 2. प्र. प्र. 77. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org