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________________ 298] [ ज्ञाताधर्मकथा तुब्भे वदह --'अम्हे तारयाहि, अम्हे पालयाहि / ' सेलए भे जक्खे परं रयणद्दीवदेवयाए हत्थाओ साहत्यि णित्यारेज्जा / अण्णहा भे न याणामि इमेसि सरीरगाणं का मण्णे आवई भविस्सइ / तो हे देवानुप्रियो ! तुम लोग पूर्व दिशा के वनखण्ड में जाना और शैलक यक्ष की महान् जनों के योग्य पुष्पों से पूजा करना / पूजा करके घुटने और पैर नमा कर, दोनों हाथ जोड़कर, विनय के साथ उसकी सेवा करते हुए ठहरना। जब शैलक यक्ष आगत समय और प्राप्त समय होकर-नियत समय आने पर कहे कि--- 'किसको तारूँ, किसे पालू" तब तुम कहना-'हमें तारो, हमें पालो।' इस प्रकार शैलक यक्ष ही केवल रत्नद्वीप की देवी के हाथ से, अपने हाथ से स्वयं तुम्हारा निस्तार करेगा। अन्यथा मैं नहीं जानता कि तुम्हारे इस शरीर को क्या आपत्ति हो जायगी?' ३८-तए णं ते मागंदियदारगा तस्स सलाइयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा णिसम्म सिग्छ चंडं चवलं तुरियं वेइयं जेणेव पुरच्छिमिल्ले वणसंडे, जेणेव पोक्खरिणी, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोक्खरिणि गाहंति, गाहिता जलमज्जणं करेंति, करित्ता जाइं तत्थ उप्पलाई जाव गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव सेलगस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता आलोए पणामं करेंति, करिता महरिहं पुप्फच्चणियं करेंति, करित्ता जण्णुपायवडिया सुस्सूसमाणा णमंसमाणा पज्जुवासंति / तत्पश्चात् वे माकन्दीपुत्र शूली पर चढ़े पुरुष से इस अर्थ को सुनकर और मन में धारण करके शीघ्र, प्रचण्ड, चपल, त्वरा वाली और वेगवाली गति से जहां पूर्व दिशा का वनखण्ड था और उसमें पुष्करिणी थी, वहाँ आये / पाकर पुष्करिणी में प्रवेश किया। प्रवेश करके स्नान किया / स्नान करने के बाद वहाँ जो कमल, उत्पल, नलिन, सुभग प्रादि कमल की जातियों के पुष्प थे, उन्हें ग्रहण किया / ग्रहण करके शैलक यक्ष के यक्षायतन में पाए। यक्ष पर दृष्टि पड़ते ही उसे प्रणाम किया। फिर महान् जनों के योग्य पुष्प-पूजा की। वे घुटने और पैर नमा कर यक्ष की सेवा करते हुए, नमस्कार करते हुए उपासना करने लगे। छुटकारे की प्रार्थना और शर्त ____३९-तए णं से सेलए जक्खे आगयसमए पत्तसमए एवं वयासी-'कं तारयामि ? कं पालयामि?' तए णं ते मागंदियदारया उट्ठाए उठेति, करयल जाव एवं वयासी-'अम्हे तारयाहि / अम्हे पालयाहि / ' तए णं से सेलए जक्खे ते मागंदियदारए एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! तुम्भे मए सद्धि लवणसमुद्देणं मज्झंमज्झणं वीइवयमाणेणं सा रयणद्दीवदेवया पावा चंडा रुद्दा खुद्दा साहसिया बहूहि खरएहि य मउएहि य अणुलोमेहि य पडिलोमेहि य सिंगारेहि य कलुणेहि य उवसग्गेहि य उवसग्गं करेहिइ / तं जइ णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! रयणद्दीवदेवयाए एयमठे आढाह वा परियाणह वा अवएक्खह वा तो भे अहं पिट्ठातो विधुणामि / अह णं तुम्भे रयणद्दीवदेवयाए एयमह्र णो आढाह, णो परियाणह, णो अवेक्खह, तो भे रयणद्दोवदेवयाहत्याओ साहत्थि णित्यारेमि / ' Jain Education International www.jainelibrary.org. For Private & Personal Use Only
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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