________________ 262 ] [ ज्ञाताधर्मकथा तत्पश्चात् वे जितशत्रु प्रभृति छहों राजा, जहाँ कुम्भ राजा था, वहाँ आ पहुँचे / पाकर कुम्भ राजा के साथ युद्ध करने में प्रवृत्त हो गये युद्ध छिड़ गया। कुम्भ की पराजय १३२---तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो कुभयं रायं हय-महिय-पवरवीरघाइयनिवडिय-चिधद्धय-प्पडागं-किच्छप्पाणोवगयं दिसो दिसि पडिसेहिति / / तए णं से कुभए राया जियसत्तुपामोहि छहि राईहि हय-महिय जाव पडिसेहिए समाणे अस्थामे अबले अवीरिए जाव [अपुरिसक्कार-परक्कम्मे] अधारणिज्जमिति कटु सिग्धं तुरियं जाव [चवलं चंडं जइणं] वेइयं जेणेव मिहिला गयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मिहिलं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता मिहिलाए दुवाराई पिहेइ, पिहित्ता रोहसज्जे चिट्ठइ / तत्पश्चात उन जितशत्रु प्रभृति छहों राजाओं ने कुम्भ राजा का हनन किया अर्थात् उसके सैन्य का हनन किया, मंथन किया अर्थात् मान का मर्दन किया, उसके अत्युत्तम योद्धानों का घात किया, उसकी चिह्न रूप ध्वजा और पताका को छिन्न-भिन्न करके नीचे गिरा दिया। उसके प्रोण संकट में पड़ गये / उसकी सेना चारों दिशाओं में भाग निकली। .. तब वह कुम्भ राजा जितशत्रु आदि छह राजाओं के द्वारा हत, मानमदित यावत् जिसकी सेना चारों ओर भाग खड़ी हुई है ऐसा होकर, सामर्थ्यहीन, बलहीन, पुरुषार्थ-पराक्रमहीन, त्वरा के साथ, यावत् [तेजी से जल्दी-जल्दी एवं] वेग के साथ जहाँ मिथिला नगरी थी, वहाँ पाया / मिथिला नगरी में प्रविष्ट हुआ और प्रविष्ट होकर उसने मिथिला के द्वार बन्द कर लिये / द्वार बन्द करके किले का रोध करने में सज्ज होकर ठहरा--किले की रक्षा करने के लिए तैयार हो गया। मिथिला का घेराव : १३३-तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता मिहिलं रायहाणि णिस्संचारं णिरुच्चारं सव्वओ समंता प्रोरु भित्ता णं चिट्ठति / - तए णं कुभए राया मिहिलं रायहाणि रुद्रं जाणित्ता अब्भंतरियाए उवट्ठाणसालाए सीहासणवरगए तेसि जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं छिद्दाणि य विवराणि य मम्माणि य अलभमाणे बहहिं आएहि य उवाएहि य उम्पित्तियाहि य 4 बुद्धीहि परिणामेमाणे परिणामेमाणे किंचि आयं वा उवायं घा अलभमाणे ओहयमणसंकप्पे जाव [करयलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए] शियायइ / / तत्पश्चात् जितशत्रु प्रभृति छहों नरेश जहाँ मिथिला नगरी थी, वहाँ आये / आकर मिथिला राजधानी को मनुष्यों के गमनागमन से रहित कर दिया, यहाँ तक कि कोट के ऊपर से भी आवागमन रोक दिया अथवा मल त्यागने के लिए भी आना-जाना रोक दिया। उन्होंने नगरी को चारों ओर से घेर लिया। तत्पश्चात् कुम्भ राजा मिथिला राजधानी को घिरी जानकर पाभ्यन्तर उपस्थानशाला (अन्दर की सभा) में श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठा / वह जितशत्रु आदि छहों राजारों के छिद्रों को, विवरों को और मर्म को पा नहीं सका। अतएव बहुत से आयों (यत्नों) से, उपायों से तथा औत्पत्तिकी आदि चारों प्रकार की बुद्धि से विचार करते-करते कोई भी आय या उपाय न पा सका / तब उसके मन का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org