________________ आठवां अध्ययन : मल्ली ] [ 221 २३-तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता। तत्थ ण महब्बलवज्जाणं छण्हं देवाणं देसूणाई बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई, महम्बलस्स देवस्स पडिपुण्णाई बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता। उस जयंत विमान में कितनेक देवों की बत्तीस सागरोपम की स्थिति कही गई है। उनमें से महाबल को छोड़कर दूसरे छह देवों की कुछ कम बत्तीस सागरोपम की स्थिति और महाबल देव की पूरे बत्तीस सागरोपम की स्थिति हुई। पुनर्जन्म २४–तए णं ते महब्बलवज्जा छप्पिय देवा जयंताओ देवलोगाओ आउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणं अणंतरं चयं चइता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विसुद्धपिइमाइवंसेसु रायकुलेसु पत्तेयं पत्तेयं कुमारत्ताए पच्चायाया। तंजहा पडिबुद्धी इक्खागराया 1, चंदच्छाए अंगराया 2, संखे कासिराया 3, हप्पी कुणालाहिवई 4, अदोणसत्तू कुरुराया 5, जियसत्तू पंचालाहिवई 6 / तत्पश्चात् महाबल देव के सिवाय छहों देव जयन्त देवलोक से, देव संबंधी आयु का क्षय होने से, देवलोक में रहने रूप स्थिति का क्षय होने से और देव संबंधी भव का क्षय होने से, अन्तर रहित, शरीर का त्याग करके अथवा च्युत होकर इसी जम्बूद्वीप में, भरत वर्ष (क्षेत्र) में विशुद्ध माता-पिता के वंश वाले राजकुलों में, अलग-अलग कुमार के रूप में उत्पन्न हुए। वे इस प्रकार (1) प्रतिबुद्धि इक्ष्वाकु वंश का अथवा इक्ष्वाकु देश का राजा हुप्रा / (इक्ष्वाकु देश को कौशल देश भी कहते हैं, जिसकी राजधानी अयोध्या थी)। (2) चंद्रच्छाय अंगदेश का राजा हुया, जिसकी राजधानी चम्पा थी। (3) तीसरा शंख काशीदेश का राजा हुया, जिसकी राजधानी वाणारसी नगरी थी। (4) रुक्मि कुणालदेश का राजा हुया, जिसकी नगरी श्रावस्ती थी। (5) अदीनशत्रु कुरुदेश का राजा हुआ जिसकी राजधानी हस्तिनापुर थी। (6) जितशत्रु पंचाल देश का राजा हुआ, जिसकी राजधानी कांपिल्यपुर थी। मल्ली कुमारी का जन्म २५-तए णं से महब्बले देवे तिहिं णाणेहि समग्गे उच्चट्ठाणट्ठिएसु गहेसु, सोमासु दिसासु वितिमिरासु विसुद्धासु, जइएसु सउणेसु, पयाहिणाणुकूलंसि भूमिसपिसि मारुतंसि पवायंसि, निष्फन्नसस्समेइणीयंसि कालंसि, पमुइयपक्कीलिएसु जणवएसु, अद्धरत्तकालसमयंसि अस्सिणोनक्खत्तेणं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org