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________________ 202] [ ज्ञाताधर्मकथा तत्पश्चात् संरक्षित, संगोपित और संवधित किए जाते हुए वे शालि-अक्षत अनुक्रम से शालि (के पौधे) हो गये। वे श्याम कान्ति वाले यावत् निकुरंबभूत-समूह रूप होकर प्रसन्नता प्रदान करने वाले, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हो गये। तत्पश्चात् उन शालि पौधों में पत्ते आ गये, वे वत्तित-गोल हो गये, छाल वाले हो गये, गभित हो गये डौंड़ी लग गई, प्रसूत हुए–पत्तों के भीतर से दाने बाहर आ गये, सुगन्ध दाले हुए, बद्धफल-बंधे हुए फल वाले हुए, पक गए, तैयार हो गये, शल्यकित हुए-पत्ते सूख जाने के कारण सलाई जैसे हो गए, पत्रकित हुए-विरले पत्ते रह गए और हरितपर्वकाण्ड-नीली नाल वाले हो गए / इस प्रकार वे शालि उत्पन्न हुए। १२-तए णं ते कोडुबिया ते सालीए पत्तिए जाव सल्लइए पतइए जाणित्ता तिक्खेहि णवपज्जणएहि असियएहि लुर्णेति / लुणित्ता करयलमलिए करेंति, करित्ता पुणंति, तत्थ णं चोक्खाणं सूयाणं अखंडाणं अफोडियाणं छड्डछड्डापूयाणं सालीणं मागहए पत्थए जाए। तत्पश्चात् उन कौटुम्बिक पुरुषों ने वह शालि पत्र वाले यावत् शलाका वाले तथा विरल पत्र वाले जान कर तीखे और पजाये हुए (जिन पर नयी धार चढ़वाई हो ऐसे) हँसियों (दात्रों) से काटे, काटकर उनका हथेलियों से मर्दन किया। मर्दन करके साफ किया। इससे वे चोखे-निर्मल, शुचिपवित्र, अखंड और अस्फुटित-बिना टूटे-फूटे और सूप से झटक-झटक कर साफ किये हुए हो गए। वे मगध देश में प्रसिद्ध एक प्रस्थक प्रमाण हो गये। विवेचन-दो असई की एक पसई, दो पसई की एक सेतिका, चार सेतिका का एक कुड़व और चार कुड़व का एक प्रस्थक होता है। यह मगध देश का तत्कालीन माप है। १३–तए णं ते कोडुबिया ते साली नवएसु घडएसु पक्खिवंति, पविखवित्ता उलिपति, उलिपित्ता लंछियमुदिए करेंति, करित्ता कोट्ठागारस्स एगदेसंसि ठाति, ठावित्ता सारक्खेमाणा संगोवेमाणा विहरति / तत्पश्चात् कौटुम्बिक पुरुषों ने उन प्रस्थ-प्रमाण शालिअक्षतों को नवीन घड़े में भरा / भर कर उसके मुख पर मिट्टी का लेप कर दिया। लेप करके उसे लांछित-मुद्रित किया- उस पर सील लगा दी। फिर उसे कोठार के एक भाग में रख दिया। रख कर उसका संरक्षण और संगोपन करने लगे। १४-तए णं ते कोडुबिया दोच्चम्मि वासारत्तंसि पढमपाउसंसि महावट्रिकार्यसि निवइयंसि खुड्डागं केयारं सुपरिकम्मियं करेंति, करिता ते साली ववंति, दोच्चं पितच्चं पि उक्खयनिक्खए जाव लणेति जाव चलणतलमलिए करेंति, करित्ता पुणंति, तत्थ णं सालोणं बहवे कुडए जाए / जाव एगदेसंसि ठावेंति, ठावित्ता सारक्खेमाणा संगोवेमाणा विहरंति / तत्पश्चात् उन कौटुम्बिक पुरुषों ने दूसरी वर्षाऋतु में वर्षाकाल के प्रारम्भ में महावृष्टि पड़ने पर एक छोटी क्यारी को साफ किया / साफ करके वे शालि बो दिये। दूसरी बार और तीसरी बार उनका उत्क्षेप-निक्षेप किया, यावत् नुनाई की-उन्हें काटा / यावत् पैरों के तलुवों से उनका www.jainelibrary.org. For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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