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________________ अष्टम शतक : उद्देशक-२ ] [ 277 एक ज्ञान (केवलज्ञान) वाले हैं। इनमें जो अज्ञानी हैं, वे दो या तीन अज्ञान वाले हैं। केवलज्ञानलब्धिवाले जीवों में एकमात्र केवलज्ञान ही होता है, केवलज्ञान की अलब्धिवाले जीवों में जो ज्ञानी हैं उनमें प्रथम के दो ज्ञान, या प्रथम के तीन ज्ञान अथवा मति, श्रत और मन:पर्यव ज्ञान के चार ज्ञान होते हैं; जो अज्ञानी हैं, उनमें दो या तीन अज्ञान होते हैं। अज्ञानलब्धियुक्त जीवों में ज्ञान और प्रज्ञान की प्ररूपणा--अज्ञानल ब्धिमान् जीवों में भजना से तीन अज्ञान (कई प्रथम के दो अज्ञान वाले और कई तीन अज्ञान वाले) होते हैं। अज्ञानलब्धिरहित जीवों में भजना से 5 ज्ञान पाए जाते हैं। मति-अज्ञान और श्रुत-अज्ञान की लब्धि वाले जीवों में पूर्ववत् 3 प्रज्ञान भजना से पाए जाए हैं / तथा मति-अज्ञान और श्रुत-अज्ञान की अलब्धि वाले जीवों में पूर्ववत् 5 ज्ञान भजना से पाए जाते हैं। विभंगज्ञान को लब्धि वाले अज्ञानी जीवों में नियमत: तीन अज्ञान होते हैं। विभंगज्ञान की प्रलब्धि वाले ज्ञानी जीवों में पांच ज्ञान भजना से और अज्ञानी जीवों में नियमतः प्रथम के दो अज्ञान पाए जाते हैं / दर्शनलब्धि युक्त जीवों में ज्ञान-प्रज्ञान-प्ररूपणा कोई भी जीव दर्शनलब्धि से रहित नहीं होता / दर्शन के तीन प्रकारों (सम्यक्, मिथ्या और मिश्र) में से कोई-न-कोई एक दर्शन जीव में होता ही है। सम्यग्दर्शनब्धि वाले जीवों में 5 ज्ञान भजना से पाए जाते हैं। सम्यग्दर्शनलब्धि रहित (मिथ्यादृष्टि या मिश्रदृष्टि) जीवों में तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं। मिथ्यादर्शनलब्धि वाले जीव अज्ञानी ही होते हैं, उनमें तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं। मिथ्यादर्शनलब्धिरहित जीव या तो सम्यग्दष्टि होंगे या मिश्रदृष्टि होंगे। यदि वे सम्यग्दष्टि होंगे तो उनमें 5 ज्ञान भजना से होंगे और मिश्रदष्टि होंगे तो उनमें तीन अज्ञान भजना से होंगे। सभ्यमिथ्यादर्शनलब्धि और अलब्धि वाले जीवों में ज्ञान और अज्ञान की प्ररूपणा मिथ्यादर्शनल ब्धि और अलब्धिवाले जीवों की तरह समझनी चाहिए। चारित्रलब्धियुक्त जीवों में ज्ञान-प्रज्ञान-प्ररूपणा चारित्रलब्घि वाले जीव ज्ञानी ही होते हैं। 5 ज्ञान भजना से पाए जाते हैं, क्योंकि केवली भगवान भी चारित्री होते हैं। चारित्र अलब्धिवाले जीव ज्ञानी और अज्ञानी दोनों तरह के होते हैं। जो ज्ञानी हैं, उनमें भजना से 4 ज्ञान (मनःपर्यायज्ञान को छोड़कर) होते हैं, क्योंकि असंयती सम्यग्दृष्टि जीवों में पहले के दो या तीन ज्ञान होते हैं, और सिद्धभगवान् में केवलज्ञान होता है / सिद्धों में चारित्रलब्धि या अलब्धि नहीं है, वे नोचारित्री-नो-अचारित्री होते हैं। चारित्रलब्धिरहित, जो अज्ञानी हैं, उनमें तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं। सामायिक आदि चार प्रकार के चारित्रलब्धियुक्त जीव ज्ञानी और छद्मस्थ ही होते हैं, इसलिए उनमें चार ज्ञान (केवलज्ञान को छोड़ कर) भजना से पाये जाते हैं / यथाख्यात चारित्र ग्यारहवें से चौदहवें गुणस्थान तक के जीवों में होता है। इनमें से ग्यारहवें और बारहवें गुणस्थानवर्ती जीव छमस्थ होने से उनमें आदि के 4 ज्ञान होते हैं और तेरहवें तथा चौदहवें गुणस्थानवी जीव केवली होते हैं, अत: उन में केवल 5 वां ज्ञान (केवलज्ञान) होता है / इसलिए कहा गया है कि यथाख्यातचारित्रलब्धियुक्त जीवों में 5 ज्ञान भजना से पाए जाते हैं। चारित्राचारित्रलब्धियुक्त जीवों में ज्ञान-अज्ञान प्ररूपणा-इस लब्धि वाले जीव सम्यग्दष्टि ज्ञानी होते हैं, इसलिए उनमें तीन ज्ञान भजना से पाए जाते हैं, क्योंकि तीर्थकर आदि जीव जब तक पूर्ण चारित्र ग्रहण नहीं करते, तब तक वे जन्म से लेकर दीक्षाग्रहण करने तक मति, श्रुत और अवधिज्ञान से सम्पन्न होते हैं / चारित्राचारित्रलब्धिरहित जीव, जो असंयत सम्यग्दृष्टि व ज्ञानी हैं, उनमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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