________________ प्रथम शतक : उद्देशक-२] [45 गोयमा ! नेरइया दुविहा पण्णता / तं जहा-धुव्वोववनगा य पच्छोववनगा य / तत्थ गंजे ते पुव्वोववनगा ते णं अष्पकम्मतरागा। तत्थ णं जे ते पच्छोववन्नगा ते णं महाकम्मतरागा। से तेणढणं गोयमा ! 0 // 2 // [5-2 प्र.] भगवन् ! क्या सभी नारक समान कर्म वाले हैं ? [5-2 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है / [प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं ? [उ.] गौतम! नारकी जीव दो प्रकार के कहे गए है; वह इस प्रकार है-पूर्वोपपन्नक (पहले उत्पन्न हुए) और पश्चादुपपन्नक (पीछे उत्पन्न हए)। इनमें से जो पूर्वोपपन्न क हैं वे अल्पकर्म वाले हैं और जो उनमें पश्चादुपपन्नक है, वे महाकर्म वाले हैं, इस कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि सभी नारक समान कर्म वाले नहीं हैं। [3] नेरइया णं भंते ! सब्वे समवण्णा ? गोयमा ! नो इण? सम? / से केपट्टणं तह चेव ? गोयमा ! जे ते पुन्टोववन्नगा ते णं विसुद्धवण्णतरागा तहेव से तेण?णं // 3 // [5-3 प्र.] भगवन् ! क्या सभी नारक समवर्ण वाले हैं ? [5-3 उ.] गौतम ! यह अर्थ (वात) समर्थ नहीं है। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? [उ.| गौतम! पूर्वोक्त कथनवन् नारक दो प्रकार के है-पूर्वोपपन्नक और पश्चादुपपन्नक / इनमें जो पूर्वोपपन्नक हैं, वे विशुद्ध वर्ण वाले हैं, तथा जो पश्चादुपपन्नक हैं, वे अविशुद्ध वर्ण वाले हैं, इसीलिए हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है। [4] नेरइया णं भंते ! सव्वे समलेसा ? गोयमा ! नो इण सम? / से केणटुणं जाव नो सव्वे समलेसा ? गोयमा ! नेरइया दुविहा पण्णता / तं जहा--पुब्बोक्वनगा य पच्छोववनगा य / तत्थ णं जे ते पुबोववनगा ते णं विसुद्धलेसतरागा, तत्थ णं जे ते पच्छोववनगा ते णं अविसुद्धलेसतरागा। से तेण?णं // 4 // [5-4 प्र. भगवन् ! क्या सब नैरयिक समानलेश्या वाले हैं ? [5-4 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है / [प्र.] भगवन् ! किस कारण से कहा जाता है कि सभी नैयिक समान लेश्या वाले नहीं हैं ? उ.] गौतम ! नै रयिक दो प्रकार के कहे गये हैं, जैसे कि–पूर्वोपपन्नक और पश्चादुपपत्रक / इनमें जो पूर्वोपपन्नक है, वे विशुद्ध लेश्या वाले और जो इनमें पश्चादुपपन्नक है, वे अविशुद्ध लेश्या वाले हैं, इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि सभी नारक समानलेश्या वाले नहीं हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org