________________ 232] (মাসকিন सभी पर्याप्त जीवों के विषय में कहना चाहिए, यावत् पर्याप्त-सर्वार्थ सिद्ध-अनुत्तरौपपातिक-कल्पातीतवैमानिक-देव-पंचेन्द्रिय-वैक्रियमिश्रशरीरकाय-प्रयोग-परिणत नहीं होता, किन्तु अपर्याप्त-सर्वार्थसिद्धअनुत्तरौपपातिककल्पातीतवैमानिकदेव-पंचेन्द्रिय-वैक्रियमिश्रशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है; (यहाँ तक कहना चाहिए)। 66. जदि श्राहारगसरीरकायप्पनोगपरिणए कि मणुस्साहारगसरीरफायप्पयोगपरिणए ? अमणुस्साहारग जाव 10? एवं जहा प्रोगाहणसंठाणे जाव इढिपत्तपमत्तसंजयसम्मद्दिष्ट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउय जाव परिणए, नो प्रशिढिपत्तपमत्तसंजयसम्माद्दिटिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउय जाव प० / 5 / [66 प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य, आहारकशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है, तो क्या वह मनुष्याहारकशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है, अथवा अमनुष्य पाहारकशरीर- कायप्रयोग-परिणत होता है ? 69 उ.] गौतम ! इस सम्बन्ध में जिस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र के अवगाहनासंस्थान नामक (इक्कीसवें) पद में कहा है, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए: यावत ऋद्धि-प्राप्त प्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्येयवर्षायुष्क मनुष्य आहारकशरीर कायप्रयोगपरिणत होता है, किन्तु अनुद्धिप्राप्त (आहार कलब्धि को अप्राप्त)-प्रमतसंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्येयवर्षायुष्क मनुष्याहारकशरीर-कायप्रयोग-परिणत नहीं होता / 70. जदि प्राहारगमोसासरीरकायप्पयोगप० कि मणुस्साहारगमीसासरीर० ? एवं जहा पाहारगं तहेव मीसगं पि निरवसेसं भाणियब्वं / 6 / / [70 प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य आहारकमिश्रशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है, तो क्या वह मनुष्याहारकमिश्रशरीरकायप्रयोग-परिणत होता है, अथवा अमनुष्याहारक-शरीर-कायप्रयोग परिणत होता है ? [70 उ०] गौतम ! जिस प्रकार आहारकशरीरकायप्रयोग-परिणत (एक द्रव्य) के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार आहारकमि शरीर-काय-प्रयोग-परिणत के विषय में भी कहना चाहिए। 71. दि कम्मासरोरकायप्पनोगव०कि एगिदियकम्मासरीरकायप्पयोगप० जाव पचिदियकम्मासरीर जाव प०? गोयमा! एगिदियकम्मासरीरकायप्पनो० एवं जहा प्रोगाहणसंठाणे कम्मगस्स भेदो तहेव इहावि जाव पज्जत्तसव्वदृसिद्धप्रणुत्तरोववाइयदेवचिदियकम्मासरीरकायप्पयोगपरिणए वा, अपज्जत्तसब्वट्ठसिद्ध अणु० जाव परिणए वा / 7 / [71 प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य, कार्मणशरीर-काय प्रयोग-परिणत होता है, तो क्या वह एकेन्द्रिय-कार्मणशरीर-काय प्रयोग-परिणत होता है, अथवा यावत् पंचेन्द्रियकार्मणशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org