________________ पंचमो उद्देसओ : 'पक्खी' पंचम उद्देशक : 'पक्षी' खेचर-पंचेन्द्रिय जीवों के योनिस ग्रह आदि तथ्यों का प्रतिदेशपूर्वक निरूपण. 1. रायगिहे जाव एवं वदासी. ___ [1] राजगृह नगर में यावत् गौतमस्वामी ने (श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से) इस प्रकार पूछा - 2. खहचरपंचेदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! कतिविहे जोणीसंगहे पण्णते ? गोयमा ! तिबिहे जोणीसंगहे पण्णते, तं जहा-अंडया पोयया सम्मुच्छिमा। एवं जहा जीवाभिगमे जाव नो चेव गं ते विमाणे वीतीवएज्जा / एमहालया गं गोयमा ! ते विमाणा पण्णत्ता। [संग्रहगाथा-'जोणीसंगह लेसा दिदी णाणे य जोग-उवनोगे। उबवाय-द्विइ-समुग्घाय-चवण-जाइ-कुल-विहीरो / ' सेवं भते ! सेवं भते ! त्ति० / // सत्तम सए : पंचमो उद्दे सो समतो / / [2 प्र.] हे भगवन् ! खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च जीवों का योनिसंग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ? [2 उ.] गौतम ! ( खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च जीवों का) योनिसंग्रह तीन प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है-अण्डज, पोतज और सम्मूच्छिम / इस प्रकार (आगे का सारा वर्णन) जीवाभिगमसूत्र में कहे अनुसार यावत् 'उन विमानों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता, हे गौतम ! वे विमान इतने महान् (बड़े) कहे गए हैं। यहाँ तक कहना चाहिए। [संग्रहगाथा का अर्थ---योनिसंग्रह, लेश्या, दृष्टि, ज्ञान, योग, उपयोग, उपपात, स्थिति, समुद्घात, च्यवन और जाति-कुलकोटि / / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है'; यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरने लगे। 1. यह संग्रहगाथा वाचनान्तर में है, वृत्तिकार ने इसे वृत्ति में उद्धृत की है, और इसकी व्याख्या भी की है। -देखें---भगवती. अ. वत्ति, पत्रांक 303 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org