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________________ 130 [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [13] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के सम्बन्ध में नैरयिक जीवों की तरह / कथन करना चाहिए। -ये सब अप्रत्याख्यानी हैं / विवेचन-जीव और चौबीस दण्डकों में मूलगण-उत्तरगुणप्रत्याख्यानी-अप्रत्याख्यानी. वक्तव्यता-प्रस्तुत 5 सूत्रों (6 से 13 तक) में समुच्चयजीवों तथा नैरयिकों से ले कर वैमानिक तक के जीवों में मूलगुणप्रत्याख्यानी, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी के अस्तित्व की पृच्छा करके उसका समाधान किया गया है। निष्कर्ष नैरयिकों, पंचस्थावरों, तीन विकलेन्द्रिय जीवों, तथा वाणव्यन्तर ज्योतिष्क और वैमानिकों में मूलगुणप्रत्याख्यानी या उत्तरगुणप्रत्याख्यानी नहीं होते, बे सर्वथा अप्रत्याख्यानी होते हैं / तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय जीवों और मनुष्यों में तीनों ही विकल्प पाए जाते हैं। किन्तु तिर्यचों में मात्र देशप्रत्याख्यानी ही हो सकते हैं। मूलोत्तरगुरणप्रत्याख्यानी-अप्रत्याख्यानी जीव, पंचेन्द्रियतिर्यंचों और मनुष्यों में अल्पबहुत्व 14. एतेसि गं भंते ! जीवाणं मूलगुणपच्चक्खाणोणं जाव अपच्चक्खाणोण य कतरे कतरेहितो जाव बिसेसाहिया वा? गोयमा ! सम्वत्थोवा जीवा मूलगुणपच्चक्खाणी, उत्तरगुणपच्चरखाणी असंखेज्जगुणा, अपच्चक्खाणी अणंतगुणा। 14 प्र.] भगवन् ! मूलगुणप्रत्याख्यानी, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी, इन जीवों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? [14 उ.] गौतम ! सबसे थोड़े जीव मूलगुणप्रत्याख्यानी हैं, (उनसे) उत्तरगुणप्रत्याख्यानी असंख्येय गुणा हैं, और (उनसे) अप्रत्याख्यानी अनन्तगुणा हैं / 15. एतेसि णं भते ! पं.दियतिरिक्खजोणियाणं० पुच्छा। गोयमा ! सव्वस्थोवा जीवा पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मूलगुणपच्चक्खाणी, उत्तरगुणपच्चखाणी असंखेज्जगुणा, अपच्चक्खाणी असंखिज्जगुणा / [15 प्र.] भगवन् ! इन मूलगुणप्रत्याख्यानी आदि (पूर्वोक्त) जीवों में पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक जीव कीन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? / [15. उ] गौतम ! मूलगुणप्रत्याख्यानी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च जीव सबसे थोड़े हैं, उनसे उत्तरगुणप्रत्याख्यानी असंख्य गणा हैं, और उनसे अप्रत्याख्यानी असंख्यगृणा हैं। 16. एतेसि गं भाते ! मणुस्साणं मूलगुणपच्चक्खाणीणं० पुच्छा। गोयमा ! सव्वथोवा मणुस्सा मूलगुणपच्चपखाणी, उत्तरगुणपच्चक्खाणी संखेज्ज गुणा, अपच्चक्खाणी असंखेज्जगुणा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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