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________________ 32] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [20, पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं ठिति भाणिऊण ऊसासो वेमायाए। प्राहारो प्रणाभोगनियत्तिप्रो अणुसमयं अविरहियो / पामोगनिम्नतिम्रो जहन्नेणं अंतोमुत्तस्स, उक्कोसेणं छट्ठभत्तस्स। सेसं जहा चरिदियाणं आव' चलियं कम्मं निज्जरेंति / / [20] पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों को स्थिति कह कर उनका उच्छवास विमात्रा से (विविध प्रकार से-अनियत काल में) कहना चाहिए, उनका अनाभोगनिर्वतित आहार प्रतिसमय विरहरहित (निरन्तर) होता है / आभोगनिर्वतित आहार जघन्य अन्तर्मुहूर्त में और उत्कृष्ट षष्ठभक्त अर्थात् दो दिन व्यतीत होने पर होता है। इसके सम्बन्ध में शेष वक्तव्य 'अचलित कर्म की निर्जरा नहीं करते, यहाँ तक चतुरिन्द्रिय जीवों के समान समझना चाहिए / मनुष्य एवं देवादि विषय [21] एवं मणस्साण वि / नवरं प्राभोगनिव्वत्तिए जहन्नेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं अट्ठमभत्तस्स। सोइंदिय 52 वेमायत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति / सेसं तहेव जाव निज्जरेंति / [21] मनुष्यों के सम्बन्ध में भी ऐसा ही जानना चाहिए; किन्तु इतना विशेष है कि उनका ग्राभोग निर्वतित आहार जघन्य अन्तर्मुहूर्त में, उत्कृष्ट अष्टमभक्त अर्थात् तीन दिन बीतने पर होता है। पंचेन्द्रिय जीवों द्वारा गृहीत आहार श्रोवेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, और स्पर्शनेन्द्रिय, इन पांचों इंन्द्रियों के रूप में विमात्रा से बार-बार परिणत होता है। शेष सब वर्णन पूर्ववत् समझ लेना चाहिए; यावत् वे 'प्रचलित कर्म की निर्जरा नहीं करते।' [22] वाणमंतराणं ठिईए नाणत्तं / अवसेसं जहा: नागकुमाराणं / (22] वाणव्यन्तर देवों की स्थिति में भिन्नता (नानात्व) है। (उसके सिवाय) शेष समस्त वर्णन नागकुमारदेवों की तरह समझना चाहिए। [23] एवं जोइसियाण वि / नवरं उस्सासो जहन्नेणं मुहत्तपुहत्तस्स, उककोसेरण वि मुहत्तपुहत्तस्स / प्राहारो जहन्नेणं दिवसपुहत्तस्स, उक्कोसेण वि दिवसपुहत्तस्स / सेसं तहेव / [23] इसी तरह ज्योतिष्क देवों के सम्बन्ध में भी जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि उनका उच्छ्वास जघन्य मुहर्तपृथक्त्व और उत्कृष्ट भो मुहूर्तपृथक्त्व के बाद होता है। उनका आहार जघन्य दिवसपृथक्त्व से और उत्कृष्ट दिवसपृथक्त्व के पश्चात् होता है। शेष सारा वर्णन पूर्ववत् समझ लेना चाहिए। [24] वेमाणियाणं ठिती माणियन्वा जोहिया। ऊसासो जहन्नेणं मुहत्तपुहत्तस्स, उक्कोसेणं तेत्तीसाए पक्खाणं / प्राहारो प्राभोगनिबत्तियो जहन्नेणं दिवसपुहत्तस्स, उक्कोसेणं तेत्तीसाए वाससहस्माणं / सेसं तहेब जाव लिज्जति / |24] वैमानिक देवों को औधिक स्थिति कहनी चाहिए। उनका उच्छ्वास जघन्य मुहर्तपृथक्त्व से, और उत्कृष्ट तैतीस पक्ष के पश्चात् होता है। उनका प्राभोगनिर्वतित आहार जघन्य "जाव' शब्द से छठे सूत्र के 1-2 से 1-10 तक का सुत्रपाठ देखें। 2. यहाँ '5' का अंक पानों इन्द्रियों का सूचक है। यहाँ 'जहा' शब्द सू-६, के 3-2 से लेकर 3-10 तक के पाठ का सूचक है। 4. यहाँ 'जाव' शब्द के लिए सूत्र-६, के 1-4 से 1-10 तक का मूत्रपाठ देखें। م و سه >> Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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