________________ [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 3. अह भंते ! प्रयास-कुसुभग-कोद्दव-कंगु-वरग-रालग-कोदूसग-सण-सरिसव-मूलगबीयमादीणं एतेसि गं धन्नाणं? एताणि वि तहेब, नवरं सत्त संबच्छराई / सेसं तं चेव / [3 प्र.] हे भगवन् ! अलसी, कुसुम्भ, कोद्रव (कोदों), कांगणी, बरट (बंटी), राल, सण, सरसों, मूलक बीज (एक जाति के शाक के बीज) अादि धान्यों की योनि कितने काल तक कायम रहती है ? [3 उ.] (हे गौतम ! जिस प्रकार शाली धान्य के लिए कहा,) उसी प्रकार इन धान्यों के लिए भी कहना चाहिए। विशेषता इतनी ही है कि इनकी योनि उत्कृष्ट सात वर्ष तक कायम रहती है / शेष वर्णन पूर्ववत् समझ लेना चाहिए। विवेचन-कोठे आदि में रखे हए शाली आदि विविध धान्यों की योनि-स्थिति-प्ररूपणाप्रस्तुत तीन सूत्रों में शाली आदि, कलाय आदि, तथा अलसी आदि विविध धान्यों की योनि के कायम रहने के काल का निरूपण किया गया है। निष्कर्ष तीनों सूत्रों में उल्लिखित शालि आदि धान्यों की योनि की जघन्य स्थिति अन्तमुहर्त है, और उत्कृष्ट स्थिति शालि आदि की तीन वर्ष है, कलाय आदि द्वितीयसूत्रोक्त धान्यों की पांच वर्ष है और अलसी आदि तृतीय सूत्रोक्त धान्यों की सात वर्ष है।' कठिन शब्दों के अर्थ-पल्लाउत्ताणं = पल्य यानी बांस के छबड़े में रखे हुए, मंचाउत्ताणं = मंच पर रखे हुए, माला-उत्ताणं =माल-मंजिल पर रखे हुए, मुद्दियाणं मुद्रित छाप कर बंद किये हुए। मुहूर्त से लेकर शीर्ष-प्रहेलिका-पर्यन्त गरिणतयोग्य काल-परिमाण-- 4. एगमेगस्स णं भंते ! मुहत्तस्स केवतिया ऊसासद्धा वियाहिया ? गोंयमा ! असंखेज्जाणं समयाणं समुदयसमितिसमागमेणं सा एगा प्रावलिय त्ति पवुच्चइ, संखेज्जा प्रावलिया ऊसासों, संखेज्जा प्रावलिया निस्सासो। हट्ठस्स प्रणवगल्लस्स निरुवकिट्ठस्स जंतुणो / एगे ऊसासनीसासे, एस पाणु त्ति वुच्चति // 1 // सत्त पाणूणि से थोवे, सत्त थोवाई से लवे / लवाणं सत्तहत्तरिए एस मुत्ते वियाहिते // 2 // तिणि सहस्सा सत्त य सयाई तेवतरि च ऊसासा। एस मुहुनो दिट्ठो सम्वेहि अणंतनाणीहिं // 3 // [4 प्र.] भगवन् ! एक-एक मुहूर्त के कितने उच्छ्वास कहे गये हैं ? 1. वियापण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा-१, पृ. 258-259 2. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 274 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org