________________ छठा शतक : उद्देशक-४] [39 .. 8. [1] भवसिद्धीया प्रभवसिद्धीया जहा प्रोहिया। [--1] भवसिद्धिक (भव्य) और अभवसिद्धिक (अभव्य) जीवों के लिए प्रोधिक (सामान्य) जीवों की तरह कहना चाहिए। [2] नोभवसिद्धियनोप्रभवसिद्धिया जीव-सिद्ध हि तियभंगो। [8-2] नोभव सिद्धिक-नोप्रभवसिद्धिक जीव और सिद्धों में (पूर्ववत्) तीन भंग कहने चाहिए। दिओ तियभंगो। [6-1] संज्ञी जीवों में जीव आदि तीन भंग कहने चाहिए। [2] असण्णोहिं एगिदियवज्जो तियभंगो / नेरइय-देव-मणुएहि छन्भंगा। [6-2] असंज्ञी जीवों में एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए / नैरयिक, देव और मनुष्यों में छह भंग कहने चाहिए। [3] नोसणि-नोनसणिणो जीव-मणुय-सिद्ध हि तियभंगो। [6-3] नोसंज्ञी-नो असंज्ञी, जीव, मनुष्य और सिद्धों में तीन भंग कहने चाहिए / 10. [1] सलेसा जहा प्रोहिया। कण्हलेस्सा नीललेस्सा काउलेस्सा जहा प्राहारमो, नवरं जस्स अस्थि एयायो / तेउलेस्साए जीवादियो लियभंगो, नवरं पुढविकाइएसु प्राउ-वणप्फतीसु छन्भंगा। पम्हलेस-सुक्कलेस्साए जोवाइलो तियभंगो। [10-1] सलेश्य (लेश्या वाले) जीवों का कथन, औधिक जीवों की तरह करना चाहिए / कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या वाले जीवों का कथन पाहारक जीव की तरह करना चाहिए / किन्तु इतना विशेष है कि जिसके जो लेश्या हो, उसके वह लेश्या कहनी चाहिए। लेजोलेश्या में जीव आदि तीन भंग कहने चाहिए; किन्तु इतनी विशेषता है कि पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवों में छह भंग कहने चाहिए। पदमलेश्या और शुक्ललेश्या में जीवादिक तीन भंग कहने चाहिए। [2] प्रलेसेहिं जीव-सिद्ध हि तिय गो, मणुएसु छम्भ गा / [10-2] अलेश्य (लेश्यारहित) जीव और सिद्धों में तीन भंग कहने चाहिए, तथा अलेश्य मनुष्यों में (पूर्ववत्) छह भंग कहने चाहिए / 11. [1] सम्मट्ठिोहि जीवाइनो तियम गो। विलिदिएसु छन्भगा। [11-1] सम्यग्दृष्टि जीवों में जीवादिक तीन भंग कहने चाहिए / विकलेन्द्रियों में छह भंग कहने चाहिए। [2] मिच्छट्ठिीहिं एगिदियवज्जो तियभगो। [11-2] मिथ्यादृष्टि जीवों में एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भंग कहने चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org