________________ अभिमत पं. श्री दलसुख भाई मालवणिया आचारांग, सूत्रकृतांग (दो-दो भाग), स्थानांग, समवायांग, ज्ञाताधर्मकथा और अनुत्तरोपपातिक मिले। बहुत-बहुत धन्यवाद! सभी का मद्रण और गैटअप आकर्षक है। सम्पादन-अनुवाद की विशेषता भी है और वह है विवेचन एवं यत्र-तत्र टिप्पणों की। पृथक-पृथक मुनिराजों द्वारा प्रस्तावना भी दी गई है, यह भी विशेषता ध्यान देने योग्य है। अभी तक अनूवाद तो पुज्य अमोलकऋषिजी, श्री डोशीजी के और पू. घासीलालजी के तथा 'अत्थागमे' उपलब्ध थे किन्तु आपके द्वारा सम्पादित अनुवाद सुवाच्य है, यह विशेषता है। परिशिष्ट जो दिए गए हैं, वे भी विद्वानों को उपयोगी होंगे, किन्तु वे पर्याप्त नहीं हैं। उदाहरणार्थ स्थानांग में विशेष नामों की सूची तो दी गई किन्तु पारिभाषिक शब्दों की सूची नहीं दी। यह अत्यन्त जरूरी थी। अन्य आगमों में आपने दी ही है / एकरूपता रहे तो अच्छा / ऐसे काम वार-वार होते नहीं। NEducation international