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________________ पंचम शतक : उद्देशक-७ ] [ 479 [3] चउप्पएसिए णं भंते ! खंधे एयति० ? गोयमा ! सिय एयति 1, सिय नो एयति 2, सिय देसे एयति, जो इसे एयति 3, सिय देसे एयति णो देसा एयंति 4, सिय देसा एयंति नो देसे एयति 5, सिय देसा एयंति नो देसा एयति / [2-3 प्र.] भगवन् ! क्या चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध कम्पित होता है ? 62-3 उ,] गौतम ! कदाचित् कम्पित होता है, कदाचिन् कम्पित नहीं होता; कदाचित् उसका एकदेश कम्पित होता है, कदाचित् एकदेश कम्पित नहीं होता; कदाचित् एकदेश कम्पित होता है, और बहुत देश कम्पित नहीं होते; कदाचित् बहुत देश कम्पित होते हैं और एक देश कम्पित नहीं होता; कदाचित् बहुत देश कम्पित होते हैं और बहुत देश कम्पित नहीं होते। [4] जहा चउप्पदेसिनो तहा पंचपदेसिनो, तहा जाव अणंतपदेसिनो। [2-4] जिस प्रकार चतुष्प्रदेशी स्कन्ध के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार पंचप्रदेशी स्कन्ध से लेकर यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक (प्रत्येक स्कन्ध के लिए) कहना चाहिए। विवेचन-परमाणुपुद्गल और स्कन्धों के कम्पन आदि के विषय में प्ररूपणा–प्रस्तुत सूत्र में परमाणुपुद्गल तथा द्विप्रदेशिक स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध के कम्पन (एजन), विशेष कम्पन, चलन, स्पन्दन, क्षोभण और उस-उस भाव में परिणमन के सम्बन्ध में प्रश्न उठाकर उसका सैद्धान्तिक अनेकान्तशैली से समाधान किया गया है।' परमाणुपुद्गल से लेकर अनन्तप्रदेशीस्कन्ध तक कम्पनादि धर्म-पुद्गलों में कम्पनादि धर्म कादाचित्क हैं। इस कारण परमाणुपुद्गल में कम्पन आदि विषयक दो भंग, द्विप्रदेशिक स्कन्ध में तीन भंग, त्रिप्रदेशिक स्कन्ध में पांच भंग और चतुष्प्रदेशी स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक प्रत्येक स्कन्ध में कम्पनादि के 6 भंग होते हैं। विशिष्ट शब्दों के प्रर्थ-एयति कांपता है। यति = विशेष कांपता है / सिय = कदाचित् / ' परमाणु पुद्गल से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक के विषय में विभिन्न पहलुओं से प्रश्नोत्तर 3. [1] परमाणुपोग्गले णं भंते ! असिधारं वा खुरधारं वा प्रोगाहेज्जा? हंता, प्रोगाहेज्जा। [3-1 प्र] भगवन् ! क्या परमाणु पुद्गल तलवार की धार या क्षुरधार (उस्तरे को धार) पर अवगाहन करके रह सकता है ? [3-1 उ.] हाँ, गौतम ! वह अवगाहन करके रह सकता है। 1. वियाहपणत्तिसुत्त (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. 1, पृ. 210-211 2. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 232 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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