________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र (भगवतीसूत्र) प्रथम उद्देशक समग्र शास्त्र-मंगलाचरण १-नमो प्ररहताणं ! नमो सिद्धाणं। नमो मायरियाणं / नमो उवझायाणं / नमो लोए सव्वसाहूणं / ' नमो बंभीए लिवीए / १-अर्हन्तों को नमस्कार हो, सिद्धों को नमस्कार हो, प्राचार्यों को नमस्कार हो, उपाध्यायों को नमस्कार हो, लोक में सर्व साधुओं को नमस्कार हो / ब्राह्मी लिपि को नमस्कार हो / विवेचन-मंगलाचरण-प्रस्तुत सूत्र में समग्रशास्त्र का भावमंगल दो चरणों में किया गया है / प्रथम चरण में पंच परमेष्ठी नमस्कार और द्वितीय चरण में ब्राह्मी लिपि को नमस्कार। प्रस्तुत मंगलाचरण क्यों और किसलिए?-शास्त्र सकल कल्याणकर होता है, इसलिए उसकी रचना तथा उसके पठन-पाठन में अनेक विघ्नों की सम्भावनाएँ हैं / अत: शास्त्र के प्रारम्भ में मंगलाचरण के तीन कारण बताए गए हैं--- (1) विघ्नों के उपशमन के लिए। (2) अशुभक्षयोपशमार्थ मंगलाचरण में शिष्यवर्ग की प्रवृत्ति के लिए। (3) विशिष्ट ज्ञानी शिष्टजनों की परम्परा के पालन के लिए / प्रस्तुत मंगलाचरण भावमंगलरूप है क्योंकि द्रव्यमंगल एकान्त और अत्यन्त अभीष्टसाधक मंगल नहीं है / यद्यपि भावमंगल स्तुति, नमस्कार, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप आदि कई प्रकार का है, किन्तु र मगल' यादि महामंगलपाठ में जा परमेष्ठीमंगल है, वह लोकोत्तम एवं इन्द्रादि द्वारा शरण्य है, तथा पंचपरमेष्ठी-नमस्कार सर्व पापों का नाशक होने से विघ्नशान्ति का कारण एवं सर्वमंगलों में प्रधान (प्रथम) है / इसलिए उसे सर्वश्रुतस्कन्धाभ्यन्तर बताकर प्रस्तुत शास्त्र के प्रारम्भ में मंगलाचरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है। नमः' पद का अर्थ-द्रव्यभाव से संकोच करना होता है। इस दृष्टि से पंचपरमेष्ठी नमस्कार का अर्थ हुया-द्रव्य से दो हाथ, दो पैर और मस्तक, इन पांच अंगों को संकोच कर अर्हन्त आदि 1. कुछ प्रतियों में 'नमो सम्बसाहूर्ण पाठ है। 2. (क) भगवतीसूत्र अभयदेववृत्ति पत्रांक 2 (ख) 'चत्तारि मंगलं-अरिहंतामंगल, सिद्धामंगलं, साहू मंगलं, केबलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं ।'-अावश्यकसत्र (ग) 'एसो पंच मोक्कारो सम्वपावप्पणासणो। मंगलारणं च सवेसि पठमं हवह मंगलं ।'--.-पावश्यकसत्र (घ) 'सो सम्बसुयरखंधभतरभूओ'-भगवती वृति पत्रांक 2 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org