________________ 396 ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र वाला होता है ?'-(उ.) गौतम! वह दो ज्ञान, तीन ज्ञान या चार ज्ञान वाला होता है। यदि दो ज्ञान हों तो–मति और श्रुत होते हैं, तीन ज्ञान हों तो मति, श्रुत और अवधि अथवा मति, श्रुत और मनःपर्यायज्ञान होते हैं, यदि चार ज्ञान हों तो मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यायज्ञान होते हैं, इत्यादि जानना चाहिए। // चतुर्थ शतक : नवम उद्देशक समाप्त // 1. (क) कण्हलेस्से ण भंते ! जीवे कइसु (कयरेसु) नाणेसु होज्जा ? गोयमा ! दोसु वा, तिसु वा, उसु वा नाणेसु होज्जा / दोसु होज्जमाणे ग्राभिणिबोहिन-सुप्रणाणेसु होज्जा, 'इत्यादि / -प्रज्ञापना पद 17 उ-३ (प. 291 म.वि.) (ख) भगवतीसूत्र अ. वृति, पत्रांक 205 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org