________________ पंचम-छट्ठ-सत्तम-अट्ठमा उद्देसा : ईसारणलोगपालरायहारगी पंचम-छष्ट-सप्तम-अष्टम उद्देशक : ईशान-लोकपाल-राजधानी ईशानेन्द्र के लोकपालों की चार राजधानियों का वर्णन१. रायहाणीसु वि चत्तारि उद्देसा भाणियस्वा जाव एमहिड्डीए जाव वरुणे महाराया। // च उत्थे सए पंच-छट्ठ-सत्तम-पट्टमा उद्देसा समत्ता / / [1] चारों लोकपालों की राजधानियों के चार उद्देशक कहने चाहिए। (अर्थात् एक-एक लोकपाल की राजधानी सम्बन्धी वर्णन पूर्ण होने पर एक-एक उद्देशक पूर्ण हुमा समझना चाहिए / इस तरह चारों राजधानियों के वर्णन में चार उद्देशक पूर्ण हुए / यों क्रमश: पांचवें से लेकर आठवाँ उद्देशक) यावत् वरुण महाराज इतनी महाऋद्धि वाले यावत् (इतनी विकुर्वणाशक्ति वाले हैं;) (यहाँ तक चार उद्देशक पूर्ण होते हैं / ) विवेचन-चार उद्देशकों में चार लोकपालों को चार राजधानियों का वर्णन-प्रस्तुत चार उद्देशकों (पांचवें से पाठवें तक) का वर्णन एक ही सूत्र में अतिदेशपूर्वक कर दिया गया है / चार राजधानियों के क्रमशः चार उद्देशक कैसे और कौन-से? जीवाभिगमसूत्र में वर्णित विजय राजधानी के वर्णक के समान चार राजधानियों के चार उद्देशकों का वर्णन इस प्रकार करना चाहिए [प्र.] भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान के लोकपाल सोम महाराज की सोमा नामक राजधानी कहाँ है ? [ऊ.] हे गौतम ! वह (राजधानी) सुमन नामक महाविमान के ठीक नीचे है; इत्यादि सारा वर्णन इसी प्रकार कहना चाहिए। . इसी प्रकार क्रमश: एक-एक राजधानी के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तरपूर्वक वर्णन करके शेष तीनों लोकपालों की राजधानी-सम्बन्धी एक-एक उद्देशक कहना चाहिए।' // चतुर्थ शतक : पंचम-षष्ठ-सप्तम-अष्टम उद्देशक समाप्त / ............ .. ........ ... .. 1. 'रायहाणीस चत्तारि उहे सा भाणियस्वा', ते चैवम–'कहिं णं भंते ! ईसाणस्स देविवस्स देवरण्णो सोमस्स महारणो सोमा नाम रायहाणी पण्णता ?' 'गोयमा ! सुमणस्स महाविमाणस्स अहे, सक्खि.......' इत्यादि पूर्वोक्तानुसारेण जीवाभिगमोक्तविजयराजधानीवर्णकाऽनुसारेण च एकैक उद्देशकोऽध्येतव्यः / -भगवती अ० वृत्ति, पत्रांक 203 (--जीवाभिगम० पृ० 217-219) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org