________________ चतुर्थशतक प्राथमिक * व्याख्याप्रज्ञप्ति का यह चतुर्थ शतक है / इस शतक में अत्यन्त संक्षेप में, विशेषतः अतिदेश द्वारा विषयों का निरूपण किया गया है। इस शतक के प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ उद्देशक में से प्रथम उद्देशक में ईशानेन्द्र के सोम, यम, वैश्रमण और वरुण लोकपालों के क्रमशः चार विमानों का नामोल्लेख करके प्रथम लोकपाल सोम महाराज के 'सुमन' नामक महाविमान की अवस्थिति एवं तत्सम्बन्धी समग्र वक्तव्यता अतिदेश द्वारा कही गई है। शेष द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ उद्देशक में ईशानेन्द्र के यम, वैश्रमण और वरुण नामक द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ लोकपाल के सर्वतोभद्र, वल्गु और सुवल्गु नामक महाविमान की अवस्थिति, परिमाण आदि का समग्र वर्णन पूर्ववत् अतिदेशपूर्वक किया गया है। * पांचवें, छठे, सातवें और आठवें उद्देशक में ईशानेन्द्र के चार लोकपालों को चार राजधानियों का पूर्ववत् अतिदेशपूर्वक वर्णन है / * नौवें उद्देशक में नैरयिकों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में प्रज्ञापना-सूत्र के२ लेश्यापद की अतिदेशपूर्वक प्ररूपणा की गई है। * दसवें उद्देशक में लेश्याओं के प्रकार, परिणाम, वर्ण, रस, गन्ध, शुद्ध, अप्रशस्त-संक्लिष्ट, उष्ण, गति, परिणाम, प्रदेश, अवगाहना, वर्गणा, स्थान और अल्पबहुत्व आदि द्वारों के माध्यम से प्रज्ञापनासूत्र के लेश्यापद के अतिदेशपूर्वक प्ररूपणा की गई है। 1. (क) वियाहपण्णत्तिसुत्त (मूलपाठ टिप्पणयुक्त) भाग-१, पृ-३६ (ख) श्रीमद्भगवतीसूत्र (टीकानुबाद-टिप्पणयुक्त) खण्ड 2, पृ-२ 2. प्रज्ञापनासूत्र के 17 वें लेश्यापद का तृतीय उद्देशक देखिये / 3. प्रज्ञापनासूत्र के 17 वें लेश्यापद का चतुर्थ उद्देशक देखिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org