________________ 392 नवम उद्देशक-इन्द्रिय (सूत्र 1) 387-388 पंचेन्द्रिय-विषयों का अतिदेशात्मक निरूपण 387, जीवाभिगम सूत्र के अनुसार इन्द्रिय विषय-संबंधी विवरण 387 / दशम उद्देशक-परिषद् (सूत्र 1) 386-390 चमरेन्द्र से लेकर अच्युतेन्द्र तक की परिषद्-संबंधी प्ररूपणा 389, तीन परिषदें : नाम और स्वरूप 389 / चतुर्थ शतक 391-399 प्राथमिक चतुर्थशतक की संग्रहणी गाथा प्रथम-द्वितीय-तृतीय-चतुर्थ उद्देशक-ईशान लोकपाल विमान (सूत्र 2-5) 392-363 __ईशानेन्द्र के चार लोकपालों के विमान और उनके स्थान का निरूपण 392 / पंचम, षष्ठ, सप्तम, अष्टम उद्देशक-ईशान लोकपाल राजधानी (सूत्र 1) ईशानेन्द्र के लोकपालों की चार राजधानियों का वर्णन 394, चार राजधानियों के क्रमश: चार उद्देशककैसे और कौन से 394 / नवम उद्देशक-नैरयिक (सूत्र 1) 395-366 नैरयिकों की उत्पत्ति प्ररूपणा 395, इस कथन का प्राशय 395, कहाँ तक 395 / दशम उद्देशक-लेश्या (सूत्र 1) 367-399 लेश्याओं का परिणमनादि पन्द्रह द्वारों से निरूपण 397, अतिदेश का सारांश 397, पारिणामादि द्वार का तात्पर्य 398 / पंचम शतक 400-522 प्राथमिक 400-401 पंचम शतक की संग्रहणी गाथा 402 प्रथम उद्देशक-रवि (सूत्र 1-27) 402-417 प्रथम उद्देशक का प्ररूपणा स्थान : चम्पा नगरी 402, चम्पा नगरी : तब और अब, 403, जम्बूद्वीप में सूर्यों के उदय-अस्त एवं रात्रि-दिवस से सम्बन्धित प्ररूपणा 403, सूर्य के उदय-अस्त का व्यवहार : दर्शक लोगों की दष्टि की अपेक्षा से 405, सूर्य सभी दिशाओं में गतिशील होते हुए भी रात्रि क्यों? 405, एक ही समय में दो दिशाओं में दिवस कैसे ? 405, दक्षिणाद्ध और उत्तराद्ध का आशय 405, चार विदिशाएँ अर्थात चार कोण 406, जम्बुद्वीप में दिवस और रात्रि का कालमान 406, दिन और रात्रि की कालगणना का सिद्धान्त 406, सूर्य की विभिन्न मण्डलों में गति के अनुसार दिन-रात्रि का परिमाण 409, ऋतु से अवसर्पिणी तक विविध दिशामों और प्रदेशों (क्षेत्रों में अस्तित्व की प्ररूपणा 409, विविध कालमानों की व्याख्या 413, अवतपिणो काल 413, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org