SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2960
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एगचत्तालीसुत्तरसयतमाइअडसठिउत्तरसयतमपज्जता उद्देसगा एकसौ इकतालीस से एकसौ अड़सठ उद्देशक पर्यन्त कृष्णपाक्षिक की अपेक्षा पूर्ववत् अट्ठाईस उद्देशकों का निर्देश 1. कण्हपक्खियरासीजुम्मकडजम्मनेरइया णं भंते ! कसो उववज्जति ? एवं एत्थ वि अभवसिद्धियसरिसा अट्ठावीसं उद्देसगा कायन्वा / सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्तिः / // इकचत्तालीसइमे सए : एगचत्तालीसुत्तरसयतमाइअडसटिउत्तरसयतमपज्जता उदेसगा समत्ता॥ // 415141-168 / / [1 प्र.] भगवन् ! कृष्णपाक्षिक-राशियुग्म-कृतयुग्मराशिविशिष्ट नैरयिक कहाँ से पाकर उत्पन्न होते हैं ? [1 उ.] गौतम ! यहाँ भी अभवसिद्धिक उद्देशकों के समान अट्टाईस उद्देशक कहने चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। // इकतालीसवां शतक : एकसौ इकतालीस से एकसौ अड़सठ उद्देशक पर्यन्त सम्पूर्ण // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy