________________ तृतीय शतक : उद्देशक-१] [ 255 जगह), किसके द्वारा कहा गया है ? इसे बताने हेतु भूमिका के रूप में यह उपोद्घात' प्रस्तुत किया गया है। चमरेन्द्र और उसके अधीनस्थ देववर्ग को ऋद्धि प्रादि तथा विकुर्वणा शक्ति 3. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवतो महावीरस्स दोच्चे अंतेवासी अग्गिभूती नाम अणगारे गोतमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे जाव२ पज्जुवासमाणे एवं वदासी-चमरे गं भंते ! असुरिदे असुर राया केहिड्ढीए ? केमहज्जुतीए ? केमहाबले ? केमहायसे ? केमहासोक्खे ? केमहाणुभागे? केवतिय च णं पभू विकुवित्तए ? / ___ गोयमा ! चमरे णं असुरिंदे असुरराया महिड्ढोए जाव महाणुभागे। से णं तत्थ चोत्तीसाए भवणावासमतसहस्साणं, चउसट्ठीए सामाणियसाहस्सोणं, तायत्तीसाए तायत्तीसगाण जाव' विहरति / एमहिड्ढोए जाव एमहाणुभागे। एवतियं च णं पभू विकुवित्तए-से जहानामए जुवती जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिता, एवामेव गोयमा ! चमरे असुरिदे असुरराया वेउव्वियसमुग्घातेणं समोहणति, 2 संखेज्जाई जोप्रणाई दंडं निसिरति, तं जहा-रतणाणं जाव' रिटाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडेति, 2 ग्रहासुहुमे पोग्गले परियाइयति, 2 दोच्चं पि वेउब्वियससमुग्धाएणं समोहण्णति, 2 पभू गं गोतमा ! चमरे प्रसुरिंदे असुरराया केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं बहूहि असुरकुमारेहि देवेहिं देवीहि य प्राइण्णं वितिकिण्णं उपत्थर्ड संथडं फुड प्रवगाढावगाढं करेत्तए / अदुत्तरं च णं गोतमा ! पभू चमरे प्रसुरिंदे असुरराया तिरियमसंखेज्जे दीव-समुद्दे बहूहिं असुरकुमारेहि देवेहि देवीहि य पाइण्णे वितिकिपणे उबत्थडे संथडे फुडे अवगाढावगाढे करेत्तए / एस णं गोतमा ! चमरस्स असुरिदस्स असुररण्णो अयमेतारूवे विसए विसय मेत्ते बुइए, णो चेव णं संपत्तीए विकुविसु वा, विकुन्वति वा, विकुन्विस्सति वा। 1. “चिन्ता प्रकृतसिद्ध यर्थमुपोद्घातं विदुर्बुधाः'-साहित्यकारों द्वारा की गई इस परिभाषा के अनुसार प्रस्तुत (वक्ष्यमाण) अर्थ (बात) को सिद्ध-प्रमाणित करने हेतु किये गये चिन्तन या कथन को विद्वान् उपोद्धात कहते हैं। 2. 'जाव' पद से औषपातिक सूत्र के उत्तरार्द्ध में प्रथम और द्वितीय सूत्र में उक्त इन्द्रभूति गौतम स्वामी के विशेषणों से युक्त पाठ समझना चाहिए। 3. 'जाव' पद से 'चउण्ह लोगपालाणं पंचण्हं अग्गम हिसीणं सपरिवाराण, तिण्हं परिसाणं, सत्तण्ह अणियाणं, सत्तण्हं अणियाहिवईणं, चउण्हं चउसट्ठीणं पायरक्खदेवसाहस्सोणं, अन्नेसि च बहुणं चमरचंचारायहाणिवत्थव्वाण देवाण य देवीण य ग्राहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्त भट्टित्त प्राणाईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाऽऽहयनट्ट-गोय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घणमुइंगपडप्प-वाइयरवेणं दिव्बाई भोग भोगाई भजमा / यह पाठ समझना चाहिए / 4. 'जाव' पद से 'वइराण वेरुलियागं लोहियक्खाण मसारगल्लाण हंसगम्भाणं पुलयाणं सोगंधियाग जोतीरसाणं अंकाण अंजणाणं रयणाणं जायरूवाणं अंजणपूलयाणं फलिहाणं' यह पाठ समझना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org