________________ अट्ठमे सन्निपंचिदियमहाजुम्मसए : एक्कारस उद्देसगा अष्टम संज्ञीपंचेन्द्रिय महायुग्मशतक : ग्यारह उद्देशक भवसिद्धिक संज्ञीपंचेन्द्रिय महायुग्मशतकवक्तव्यता-निर्देश 1. भवसिद्धियकडजुम्मकडजुम्मसन्निपंचेंदिया णं भंते ! कओ उवधज्जति ? 0 जहा पढम सन्निसयं तहा नेयब्धं भवसिद्धियाभिलावेणं, नवरं 'सव्वपाणाo? णो तिणठे समठे।' सेसं तं चेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति०। 40 / 8 / 1-11 // ॥चतालीसइमे सए : अट्टमं सयं / / 40-8 // [1 प्र.] भगवन् ! कृतयुग्म-कृतयुग्मराशियुक्त भवसिद्धि कसंज्ञोपचेन्द्रिय जीव कहाँ से पाकर उत्पन्न होते हैं ? [1 उ.] गौतम ! प्रथम संजीशतक के अनुसार भवसिद्धिक के पालापक से यह शतक जानना चाहिए। विशेष में--- [प्र.] भगवन् ! क्या सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्व यहाँ पहले उत्पन्न हुए हैं ? [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। शेष पूर्ववत् जानना। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है,' इत्यादि पूर्ववत् / // चालीसवां शतक : अष्टम अवान्तरशतक सम्पूर्ण / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org