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________________ [725 चालीसवां शतक : उद्देशक 1] [5 प्र.] भगवन् ! सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्व यहाँ, पहले (इससे पूर्व) उत्पन्न हुए हैं ? __[5 उ.] गौतम ! वे इससे पूर्व अनेक वार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हो चुके हैं। 6. एवं सोलससु बि जुम्मेसु भाणियव्वं जाव प्रणतखुत्तो, नवरं परिमाणं जहा बेइंदियाणं, सेसं तहेव / सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०॥ 40 // 11 // [6] इसी प्रकार सोलह युग्मों में यावत् अनेक बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हो चुके हैं, यहाँ तक कहना चाहिए / इनका परिमाण द्वीन्द्रिय जीवों के समान है / शेष सब पूर्ववत् है। __'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं / / 40 / 1 / 1 / / 7. पढमसमयकडजुम्मकडजुम्मसन्निपंचेंदिया णं भंते ! कतो उववज्जंति ? उववातो, परिमाणं, अवहारो' जहा एतेसि चेव पढमे उद्देसए। ओगाहणा, बंधो, वेदो, वेयणा, उदयी, उदीरगा य जहा बेंदियाणं पढमसमइयाणं तहेव / कण्हलेस्सा वा जाव सुक्कलेस्सा वा। सेसं जहा बंदियाणं पढमसमइयाणं जाव अणंतखुत्तो, नवरं इथिवेदमा वा, पुरिसवेदगा वा, नपुसगवेदगा वा; सणिणो, नो असणिणो। सेसं तहेव / एवं सोलससु वि जुम्मेसु परिमाण तहेव सव्वं / सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० // 40 // 1 // 2 // _ [7 प्र.] भगवन् ! प्रथम समय के कृतयुग्म-कृतयुग्मराशियुक्त संज्ञीपंचेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [7 उ.] गौतम ! इनका उपपात, परिमाण, अपहार (आहार) प्रथम उद्देशक के अनुसार जानना। इनकी अवगाहना, बन्ध, वेद, वेदना, उदयी और उदीरक द्वीन्द्रिय जीवों के समान समझना। ये कृष्णलेश्यी यावत् शुक्ललेश्यी होते हैं। शेष प्रथमसमयोत्पन्न द्वीन्द्रिय के समान यावत् इससे पूर्व अनेक बार या अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं, यहाँ तक जानना। वे स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी या नपुंसकवेदी होते हैं। वे संज्ञी होते हैं, असंज्ञी नहीं। शेष पूर्ववत् / इसी प्रकार सोलह ही युग्मों में परिमाण प्रादि की वक्तव्यता पूर्ववत् जाननी चाहिए / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'०, इत्यादि पूर्ववत् / / 40 / 1 / 2 / / ___8. एवं एस्थ वि एक्कारस उद्देसगा तहेव / पढमो, ततिम्रो, पंचमो य सरिसगमा / सेसा अट्ठ वि सरिसगमा / चउत्थ-अटुम-दसमेसु नस्थि विसेसो कोयि वि। सेवं भंते ! भंते ! त्ति० // 40-13-11 // // चत्तालीसइमे सते पढमं सन्निपंदियमहाजुम्मसयं समतं // 40-1 / / 1. पाठान्तर-आहारो' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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