________________ पढमे बेइंदियमहाजुम्मसए : तइयाइएक्कारसमपज्जंता उद्देसगा प्रथम द्वीन्द्रियमहायुग्मशतक : तीसरे से ग्यारहवें उद्देशक पर्यन्त कुछ विशेषताओं के साथ तीसरे से ग्यारहवें उद्देशक-पर्यन्त प्ररूपणा 1. एवं एए वि जहा एगिदियमहाजुम्मेसु एक्कारस उद्देसगा तहेव भाणियच्या, नवरं च उत्थ'अट्ठम-दसमेसु सम्मत्त-नाणाणि न भण्णंति / जहेव एगिदिएसु; पढमो ततिम्रो पंचमो य एक्कगमा, सेसा अट्ट एक्कगमा। // छत्तीसइमे सए : पढम-बेइंदियमहाजुम्मसए तइयाइएक्कारसमपज्जंता उद्देसगा समत्ता // // 36.113.11 / / // पढमं दियमहाजुम्मसयं / / 36-1 // [1] एकेन्द्रियमहायग्म-सम्बन्धी ग्यारह उद्देशकों के समान यहाँ भी कहना चाहिए। किन्तु यहाँ चौथे, (छ)' पाठवें और दसवें उद्देशकों में सम्यक्त्व और ज्ञान का कथन नहीं होता। एकेन्द्रिय के समान प्रथम, तृतीय और पंचम, इन तीन उद्देशकों के एकसरीखे पाठ हैं, शेष पाठ उद्देशक एक समान हैं। // छत्तीसवें शतक में प्रथम द्वीन्द्रियमहायुग्मशतक के तीसरे से ग्यारह उद्देशक तक सम्पूर्ण / // प्रथम द्वीन्द्रियमहायुग्मशतक समाप्त / 1. यहाँ किसी प्रति में 'चउत्थ' शब्द के बाद 'छट्ट' शब्द मिलता है। इस दृष्टि से चौथे, छठे, प्राटवे और दसवें उद्देशकों में सम्यक्त्व और ज्ञान नहीं होता, ऐसा अर्थ किया गया है। -सं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org