________________ नवमाइबारसमपज्जतेसु एगिदियमहाजुम्मसएसु पढमाइ एक्कारसपज्जता उद्देसगा नौवें से बारहवां शतक : सबमें पहले से ग्यारह उद्देशक पर्यन्त पंचम से अष्ट अवान्तरशतकवत् नौवें से बारहवे तक अभवसिद्धिकशतकचतुष्टय-निर्देश 1. जहा भवसिद्धिएहि चत्तारि सयाई भणियाई एवं अभवसिद्धिएहि वि चत्तारि सयाणि लेसासंजुत्ताणि भाणियवाणि / सव्वपाणा.? तहेव, नो इणठे समझें। एवं एयाइं बारस एगिदियमहाजुम्मसयाई भवंति। सेवं भंते ! सेवं भंते ! तिः। // पंचतीसइमे सए : नवमाइ-बारसम-पज्जताई सयाई समत्ताई // // पंचतीसइमं सयं समत्तं // 35 // [1] जिस प्रकार भवसिद्धिक-सम्बन्धी चार शतक कहे, उसी प्रकार अभवसिद्धिकएकेन्द्रिय के लेश्या-सहित चार शतक कहने चाहिए / (इन चारों शतकों में भी) [प्र.] भगवन् ! सर्व प्राण यावत् सर्व सत्त्व पहले उत्पन्न हुए हैं ? [उ.] पूर्वत् / यह अर्थ समर्थ नहीं है / (इतना विशेष जानना चाहिए / ) इस प्रकार ये बारह एकेन्द्रियमहायुग्मशतक हैं। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं / / 3516-12 / 1-11 // // पैंतीसवां शतक : नौवें से बारहवें अवान्तरशतक तक सम्पूर्ण // // पैतीसवां शतक समाप्त / / 35 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org